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उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति-ग्रन्थ । द्वारा की गई साधना जैन कथा साहित्य के क्षेत्र में युगानुरूप गुरुदेवश्री साहित्यकार, विचारक व मधुर वक्ता थे। वे अद्वितीय रहेगी।
अध्यात्म-साधना में अग्रणी थे। उनकी साधना व ध्यान की अनेक बातें हैं। कई अवसरों पर मुझे उनकी साधना के प्रत्यक्ष चमत्कार
देखने का अवसर भी मिलता था। उनके मुखारबिन्द से दिन व रात एक युग पुरुष
का मांगलिक श्रवण करने सैंकड़ों श्रावक-जैन-अजैन उपस्थित रहते
थे। उस मांगलिक श्रवण से जो आनन्द की अनुभूति होती थी -डॉ. लक्ष्मी लाल लोढ़ा
उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। उस समय एक (प्राध्यापक, भौतिक विज्ञान, राजकीय महाविद्यालय,
चित्तौड़गढ़ (राज.))
अद्भुत शान्ति व निर्द्वन्दता के हिलोरें मन में उठते थे। अन्तिम
समय में मैं भी उदयपुर ही था, गुरुदेव श्री में मैंने जिस विशिष्ट परम श्रद्धेय सद्गुरुवर्य अध्यात्मयोगी पूज्य गुरुदेव श्री पुष्कर अध्यात्म चेतना का दर्शन किया वह उन्होंने उच्च कोटि की साधना मुनिजी महाराज श्री अपूर्व प्रभावशाली, सौम्य व्यक्तित्व के धनी एवं । के बल पर ही प्राप्त की होगी। तेजस्वी महापुरुष थे। गुरुदेवश्री से हमारे सम्बन्ध गुरु-शिष्य के रूप गुरुदेवश्री के प्रति जन-मानस की जो असीम भक्ति, आस्था व में विगत कई वर्षों से थे। मैंने सर्वप्रथम गुरुदेवश्री के दर्शन मेरी श्रद्धा है उसका मुख्य कारण ही मैं यह मानता हूँ कि वे एक निस्पृह दादी माँ श्रीमती नाथीबाई के साथ किये थे। गुरुदेवश्री का वह योगी, शान्त तपस्वी, करुणाशील संत और परमार्थ सेवी महान युग प्रथम मातृतुल्य वात्सल्य मुझे आज तक भी याद है। वैसे तो पुरुष थे। मैं जन्म जयन्ती के इस अवसर पर श्रद्धापूर्वक उनको चातुर्मास अवधि में उनसे दर्शन लाभ का प्रयत्न करता था मगर श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ। जब से गुरुदेव श्री का चातुर्मास १९८० में उदयपुर हुआ था, उस समय मुझे अधिक निकट रहने का अवसर प्राप्त हुआ। मैंने यह । तीर्थों में तीर्थ पुष्कर, संतों में सन्त पुष्कर अनुभव किया कि गुरुदेव श्री सभी व्यक्तियों से एक ही स्नेह से वार्ता करते थे। कभी किसी को टालने की कोशिश नहीं करते थे।
-ब्रजभूषण भट्ट हर व्यक्ति जो उनके सम्पर्क में आता यह अनुभव करता कि गुरुदेव
पुष्कर जिस प्रकार तीर्थों का गुरु कहलाता है। यह अत्योक्ति श्री की उसी पर असीम कृपा दृष्टि है।
नहीं होगी यदि कहें कि पुष्कर मुनि का भी गुरुओं में वही पूज्य उस चातुर्मास में मुझे "श्री त्राटक युवक परिषद्" के मन्त्री के स्थान है-वे जैन दर्शन के ही प्रकांड विद्वान नहीं थे अपितु वैदिक रूप में कार्य करने का अवसर मिला। परिषद् ने कई धार्मिक दर्शन के उतने ही मर्मज्ञ थे व अन्य धर्मों के भी ज्ञानी थे-यह कहें आयोजन करवाये। एक मैगजीन "युवा जाग्रति" का भी प्रकाशन कि वे धार्मिक एनसाइक्लोपीडिया (ज्ञानकोष) थे तो ज्यादा उचित करवाया। मैं इन सभी कार्यों के सम्पादन में अनेक कठिनाइयों का होगा, सर्व धर्म समभाव उनके प्रवचन का सार था। अनुभव कर रहा था। मैं अनेक बार इनके निवारण व अन्य के
किशनगढ़ में महाराज श्री के चातुर्मास में कई महोत्सव, दीक्षा लिए गुरुदेवश्री के समक्ष अपनी बात रखता था। गुरुदेवश्री अपने
समारोह और कल्याण कार्य संपादित हुये, गीता जयन्ती पर अर्ज मधुर शब्दों में मुझे समझाते और कहते थे "सब हो जायगा"। इस
करने पर सहमति ही नहीं पूर्ण रूप से आयोजन करने का आशीर्वचन में न मालूम क्या जादू था कि कठिनतम कार्य भी अति
आश्वासन दिया-यहाँ स्थित माध्यमिक विद्यालय के प्रांगण में सरलता से सम्पन्न हो जाता था। मुझे अपने शोध कार्य में बड़ी
उपाध्याय जी के सान्निध्य में गीता जयन्ती १२ वर्ष पूर्व अत्यधिक कठिनाई अनुभव हो रही थी। मैं कभी-कभी नर्वस हो जाता था।
शालीनता से मनाई गई। जैन-अजैन श्रोतागणों का उत्साह और एक बार गुरुदेवश्री के समक्ष अपनी बात रखी। गुरुदेवश्री ने फिर }
आनन्द वर्णनातीत है। महाराज श्री की रचनावही आशीर्वचन "सब हो जायेगा" दोहराया। तत्पश्चात् मेरा कार्य किस तरह से सम्पन्न होने लगा उसकी मुझे पहले उम्मीद नहीं थी।
_ग्रंथों में गीता है, सतियों में सीता है इससे उनके प्रति मेरी श्रद्धा और गहरी हो गई। अन्ततोगत्वा मैंने आज भी याद आती है जब भी गीता जयंती आती है-पुष्कर अपना शोध कार्य पूर्ण किया।
मुनि जैनियों के ही नहीं थे, सबके थे। ऐसा मैं मानता हूँ। उनके अब तो मैं जब भी दर्शन करने जाता अधिकाधिक समय
सभास्थल में अन्य धर्मावलम्बियों की भी बराबर उपस्थिति बनी गुरुदेवश्री के सम्पर्क में गुजारने का प्रयत्न करता था। गुरुदेवश्री की
रहती थी। हमारे यहाँ के डॉ. फैयाज अली जी तो नित्य ही वखाण भी असीम कृपा थी कि मुझे कहते “बैठ" और फिर वह में बिला नागा आते थे और कभी-कभी उनसे धार्मिक समस्याओं वात्सल्ययुक्त ज्ञान की बातें बताते कि समय का ध्यान ही नहीं
| पर भी विचार-विमर्श करते थे। रहता, दूसरे भाई-बहिन दर्शन करने आते-जाते मगर मैं वहीं बैठा पुष्करमुनि की आध्यात्मिक, यौगिक शक्ति का अनुमान इसी से रहता। ऐसा महान व्यक्तित्व अभी तक मेरे जीवन में नहीं आया। । लगता है कि उनके दर्शन मात्र से कइयों की पीड़ायें शांत होती थीं
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