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श्रद्धा का लहराता समन्दर
बातों ही बातों में धर्म का मर्म समझाने की उनकी अद्भुत क्षमता थी। उन्होंने अपने अन्तरंग कृपा पात्र सुशिष्य विवर्य श्री देवेन्द्र मुनि जी म. सा. को साहित्य साधना में जोड़कर शास्त्रीय गूढ़ ज्ञान दिया और उनमें आचार्य बनने की प्रतिभा और योग्यता पैदा की। उपाध्यायप्रवर के सुशिष्य परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर श्री देवेन्द्र मुनि जी म. सा. श्रमणसंघ के नायक के रूप में शासन सेवा कर रहे हैं।
उपाध्यायप्रवर पिछले कुछ समय से अस्वस्थ थे फिर भी उनकी दैदीप्यमान मुखमुद्रा देखकर किसी को अस्वस्थता के भाव देखने को नहीं मिले और संथारापूर्वक समाधि मरण प्राप्त कर साधना का चरम उद्देश्य प्राप्त किया।
हम, अध्यात्मयोगी परम श्रद्धेय उपाध्याय पं. रत्न श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के स्वर्गवास से प्राचीन परम्परा के आत्मार्थी संतरत्न की अपूरणीय क्षति मानते हैं और दिवंगत आत्मा के गुण स्मरण के साथ उन्हें भावपूर्ण श्रद्धा समर्पित करते हैं।
विलक्षण व्यक्तित्व के धनी
-श्री कृष्णमल लोढ़ा (अध्यक्ष) -अनराज बोथरा (मंत्री) (श्री जैनरत्न हितैषी श्रावक संघ, जोधपुर)
परम श्रद्धेय उपाध्याय पं. रत्न श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. भारतीय श्रमण परम्परा के विशिष्ट ज्ञानी-ध्यानी और विलक्षण व्यक्तित्व के धनी संत रत्न थे।
चौदह वर्ष की लघुवय में दीक्षा लेकर संयम साधना में सतत् जागरूक रहकर उपाध्याय श्री ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार का श्लाघनीय प्रयास किया।
वयोवृद्ध उपाध्याय श्री के जीवन में ज्ञान और क्रिया का अद्भुत संगम था। वे प्रशान्त, सौम्य और उदात्त प्रकृति के धीरगंभीर सन्त थे।
उपाध्यायप्रवर कुशल शिल्पी थे। उन्होंने अपने अन्तरंग शिष्य विद्ववर्य श्री देवेन्द्र मुनि जी को शिक्षण-प्रशिक्षण देकर भ्रमणसंघ के आचार्य पद प्राप्ति के योग्य बनाया। उपाध्यायप्रवर के सुशिष्य आचार्यप्रवर श्री देवेन्द्र मुनि जी म. सा. का चादर समारोह उदयपुर में सम्पन्न होने के मात्र चार दिन पश्चात् संथारा स्वीकार करना और समाधि-मरण प्राप्त करना अनुपम साधना का उत्कृष्ट अध्याय है। ऐसे अध्याय को अध्यात्मयोगी ही प्राप्त करते हैं।
श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ, जोधपुर अध्यात्मयोगी उपाध्याय पं. रत्न श्री पुष्कर मुनि जी म. सा. के स्वर्गस्थ होने पर पुरानी पीढ़ी के चारित्रवान संतरत्न की अपूरणीय क्षति मानता है। और दिवंगत आत्मा को भावपूर्ण श्रद्धा अर्पित करता है। ..
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बंदऊ गुरुपद पदुम परागा
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-गणेशलाल व्होरा
इस अवनि पर अवतार लेने वाली विशिष्ट आत्माओं में से एक महान आत्मा श्री पुष्कर मुनिजी थे। वे अवनि पर आत्मा बनकर आये मही पर महात्मा बनकर जिये और परमात्मा के परम तत्व में पुनः विलीन हो गए। केवल उनके व्यक्तित्व और कृतित्व की महक, याददाश्त, स्मरण, प्रभाव और प्रकाश रह गया है जो व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और मानव संस्कृति को लाभान्वित करता रहेगा।
आपका जीवन व जगत् अद्भुत, अलौकिक, अनोखा, असीम और आदर्शवादिता लिये हुए था। ये चुम्बकीय आकर्षण तथा पारसमणि के गुणों से ओत-प्रोत थे जो कोई उनके संपर्क में आया, वह बिन मोल उनका ही हो जाता था। वे चमत्कारी महापुरुष, मुनि और महात्मा थे। ये सब अनुभवजन्य प्रभाव का प्रस्तुतिकरण है। मैं और मेरे परिवार पर पड़े प्रथम दर्शन, चरण-स्पर्श और निकटता का प्रभाव है हमको उन्होंने कृतार्थ किया। हम धन्य हो गये। न जाने कौन से पूर्व जन्म की पुण्यायी उदय हुई कि हमें उनका वरद हस्त और उनके अनुयायियों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। हम उनके हो गये। भाग्य हैं हमारे।
हमारा परिवार वैष्णव ब्राह्मण कुल में से है। हम वह घड़ी और दिन भूल नहीं सकते जब हमें उनके प्रथम मांगलिक सुनने का सुअवसर मिला। कुछ सालों पूर्व आपका (अपनी संत मंडली के साथ) चौमासा इन्दौर नगर में हुआ था। वहाँ आपकी बड़ी ख्याति फैली हुई थी। जिज्ञासावश हम भी दर्शन लाभ हेतु गये। प्रवचन सुना, मांगलिक सुना और दर्शन कर लाभान्वित हुए। प्रत्यक्ष प्रभाव ने हमें लुभा लिया। फिर तो प्रायः प्रतिदिन हम जाने लगे। न जाने क्या जादू हमारे परिवार पर (बच्चों से बुजुर्ग तक) हो गया कि हम उनके अनन्य भक्त, श्रद्धालु और स्नेही पात्र बन गये।
उनके मांगलिक सुनने के लिए तो लोगों की भीड़ लगी रहती थी। दूर-दूर से दुःखी दर्दी, आकांक्षी, श्रद्धालु भक्तगण नियमित समय पर आकर इकट्ठे हो जाते थे। उनके (श्री पुष्कर मुनि जी ) मांगलिक में वह चमत्कार था कि अनुयायियों की व उपस्थितों की मन:कामना पूर्ण हो जाती थी। अपार संतोष मन में और पूर्ण सफलता (कामनाओं में लोगों को मिलती थी कई अच्छे-अच्छे लोगों से मैने स्वयं सुना है स्वयं ने भी कई बार अनुभव किया है। उनका व्यक्तित्व विरला था और कृतित्व अनुकरणीय, आदर्शयुक्त अनूठा था।
उनकी विशेष विशेषता यह थी कि उपदेश के बनिस्पत उदाहरण को वे श्रेष्ठ मानते थे (Example is better than
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