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| श्रद्धा का लहराता समन्दर
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आपने ७० वर्ष के दीर्घ समय तक संयम की साधना की। पू. पण्डितरत्ना प्रभागुरुणीजी म. सा. के मुखारबिंद से सुनने को आपके अचानक यूं चले जाने से जो खोया वह कभी पा नहीं मिलती हैं। जैसे प. पूज्य गुरुदेव गणेशलालजी म. सा. ने मिथ्यात्व सकते। भाव विह्वल हृदय से हम सब आपको श्रद्धा के सुमन अर्पित की भ्रान्ति को दूर किया और कई श्रावक और श्राविकाओं को करते हैं।
प्रतिज्ञाबद्ध किया था कि वह कभी भी मिथ्यात्वी देवता की
आराधना नहीं करेंगे। यदि कोई दैवीय शक्ति से दुःखी था तो उसके योगीश्वर
दुःख को दूर किया। बस इसी प्रकार अध्यात्म-योगी पू. श्री पुष्कर
मुनि जी महाराज के प्रति भी प्रगाढ़ श्रद्धा के बोल पू. गुरुणीजी म. -साध्वी प्रतिभाकंवर जी सा. के मुखारबिन्द से कहते सुना कि वह भी एक महान् संयमी
साधक थे। जो दुःखी, पीड़ित मानस की चेतना को सम्यक् शक्ति के आलोक रश्मि बिखेरता हुआ सहस्रांशु जनमानस के अधंकार
आलोक से भर देते थे। जिनकी कृपा से अनेक व्यक्तियों की को नष्ट करने के लिए उदित हुआ। उसका उदित होता हुआ
समकित दृढ़ बनी है। हमें तो दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं प्रकाश वह बिखरी हुई किरणें सोये मानस को झकझोर कर जगाने
हुआ पर फूल की सौरभ और महापुरुषों की गुणों की सुगन्धि वायु वाली वह रश्मियाँ जिसके सामने बिचारा चन्द्रमा सिमट कर रह
से ज्यादा तेज गति से प्रसरित होती है। यह एक दिव्य भव्य आत्मा गया। तारों की बारात अस्ताचल पर डूबती-सी दिखायी देने लगी।
थी। जिनके विषय में जितना कहें उतना ही कम है। जब हम उनका अंधेरा तो दुम दबाकर नौ दो ग्यारह हो गया।
साहित्य देखते हैं तो हर पंक्ति में नवीनता ही दृष्टिगोचर होती है। _उसी समय मेरी चेतना ने चिन्तन में गोते लगाना प्रारम्भ । जितनी बार पढ़ो उतने बार अनोखे ही भाव जानने को मिलते हैं। किया। चेतना चिन्तन में खो गयी, क्या अकेला सूरज ही आलोक ऐसे महान् लेखक थे वह महापुरुष जो आज नश्वर शरीर से हमारे की रश्मियों को बिखेर कर संसार का अंधकार मिटा सकता है? 1 मध्य नहीं हैं पर उनका साहित्य, उनका आदर्श गुण यह सब हमें क्या उसके सानी और कोई संसार में नहीं है? मेरी सुप्त प्रज्ञा ने सर्चलाईट के समान मार्गदर्शित करता है। उनकी अनुपम निधि जागृति के स्वर में जबाब दिया-नहीं। अकेला सूरज तो सिर्फ | हमारे लिए पाथेय के समान काम आयेगी। ऐसे अध्यात्मयोगी द्रव्यान्धकार को दूर कर सकता है। द्रव्य रूप में रहे चाँद तारों के जनमानस में अपने त्याग की प्रतिभा से छाने वाले उस योगी को प्रकाश को मंद कर सकता है। लेकिन संसार में सूर्य के समान अंतर के कण-कण से शत-शत प्रणिपात करेंगे। अंत में इसी तेजस्वी पुत्र अपने माता के धवल दूध की ओर धवल प्रदान करके । शुभकामना के साथ.... जनमानस में छिपे भावान्धकार को दूर करने का कार्य करते हैं।
“अध्यात्म पथ के पथिक योगीश्वर, वह मानस के दिल के अंधकार भरे कोने को छूकर उसमें रही
जीवन को नयी दिशा प्रदान की। गंदगी को फिल्टर कर देते हैं। रिफाइन्ड करने का कार्य करते हैं। वह है संत एवं सज्जन प्राणी।
बढ़ करके संयम के शुभ पथ पर,
इस धरती के कण-कण में पावनता निर्माण की॥" संतों का जीवन आलोक भरा होता है। उनके उदित होते ही आभ्यन्तर अंधकार कोसों दूर चला जाता है। जो आभ्यन्तर अंधकार एवं चैतन्य की जागृति का ही उपदेश देते हैं। जिनके उपदेशों से जनता में जागृति आकर जन-मानस में फैले तमस को
ओ! पुष्कर गुरुदेव प्यारा..... दूर किया जाता है। तमसावृत संसार में एक नयी किरण आकर प्रकाश फैला सकती है। ऐसे ही समाज को नयी दिशा प्रदान करने
-साध्वी मितेषा वाले अध्यात्मयोगी पुष्कर मुनिजी म. सा. के. स्मृति ग्रन्थ के बारे
(लींबडी गोंडल संप्रदाय की सिद्धान्त प्रेमी
पूज्य मुक्ताबाई महासती जी की शिष्या) में सुना और लेखनी ने दिल के असीमित भावों को सीमित शब्दों में बाँधने का असफल प्रयास करने का क्रम जारी किया जिस योगी
नाम पण सुन्दर, जीवन पण सुन्दर का व्यक्तित्व चारों तरफ से हिरकणी के समान उज्ज्वल एवं निर्मल
साधना पण श्रेष्ठ उत्तम सम्यक् पुरुषार्थे करी सुन्दर। था, जिनमें चरित्र की आभा एवं संयम की प्रभा के हरपल हरक्षण
धन्य छे गुरुदेव नो मंगल जीवन! दर्शन होते थे। जिनकी पावन साधना के तले कई पामर आत्माओं ने प्रकाश पाया था। कइयों के अंधकारपूर्ण जीवन में सुखद एवं
पुष्कर = पुष् + कर = पुष = पोषण करवू सुनहरा-प्रकाश फैला था। उस प्रकाश से सभी प्रकाशित होते हैं।
तप-त्यागे आत्मानुं पोषण करे तेनुं नाम पुष्कर! चाहे वह निकट रहने वाला हो, चाहे दूर रहने वाला हो। पर उस
जैना रोम रोम माँ प्रभुभक्तिनी ने मैत्री नी विलसी धारा सुखद प्रकाश से प्रकाशित हुए बिना नहीं रहता है। बहुत सी बात
ओ पुष्कर गुरुदेव प्यारा!
जानव
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0 govt. jainelibrary.org. 2986DODDC80866000