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४८ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-प्रन्थ
पं० जी सहजभावसे बात कर रहे हैं - हालचाल पूछ रहे हैं और बात के दौरान बता रहे हैं कि पत्नीका निधन हो गया है-अभी वहींसे आ रहे हैं ।
पं० जी में एक खासियत थी - वे किसीके भी कार्यके लिए दौड़ पड़ते थे । यही सबके लिए दौड़ पड़ना उनके स्वास्थ्यके लिए विशेषकर अन्तिम समयमें दुखद बनकर उनकी मृत्युका कारण भी बना यह एक कटु सत्य है जिसका उल्लेख बस इतना ही करना समीचीन होगा ।
तुलना
आज पंडित वर्गकी तुलना में पुस्तकों पर पुरस्कारोंकी बौछार होनेकी 'में- पारिश्रमिक की दृष्टिसे आजमें और तबमें जमीन आसमानका अन्तर है । आज पाँचों उगलियाँ घीमें हैं अगर कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी और पहले पंडित वर्गका जीवन पिसता था और उसमेंसे विद्वत्ता निखर - निखर कर आती थी क्योंकि तब यही नीति थी—
जीर्ण सुभाषितम्
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