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२६ : डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्य उनका गुणगान ही वास्तविक श्रुत-आराधना • पं० बालचन्द्र काव्यतीर्थ, नवापाराराजिम
आदरणीय पूज्य डॉ. महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यको आज स्मरण करते हुए बरबस ही हृदय अकथनीय श्रवासे भर उठता है। डॉ० साहब ऐसे जाज्वल्यमान रत्न थे जिनने जैन न्याय-दर्शनको देश, विदेशमें अपनी लेखनी द्वारा पुनः स्थापित किया। उनके द्वारा जटिल एवं दुरूह ग्रन्थोंका जो सम्पादन एवं उन ग्रन्थोंकी प्रस्तावना लिखी गई है उससे आज सामान्य जन भी दुरूह विषयको सरलतासे समझ लेते हैं ।
यह उनकी प्रतिभा की देन है कि आज वे दुरूह गम्भीर विषय पाठ्यक्रमों में स्थान पा सके हैं । यह डॉ० साहबके श्रमका ही फल है कि हमें आज पूज्य आचार्य अकलंकदेवको महिमाका बोध इनकी सम्पादित टौंकाओंसे हुआ । जैनधर्मके जिज्ञासुओंके लिए उनकी कृति "जैनधर्म" ही पर्याप्त है।
समाजके नवयुवकोंके लिए डॉ० सा०का जीवन एक ज्वलंत उदाहरण है कि व्यक्ति युवा अवस्थामें 'जो ठान ले वह बन जाता है । आवश्यकता सिर्फ इस बात की है कि उस दिशामें उसकी लगन और पुरुषार्थ बरबिरे बनी रहे।
सरस्वती पुत्रका स्मृति ग्रंथके प्रकाशनसे अपने आपको गौरान्वित अनुभव कर रहे हैं । उनका गुणगान ही हमारी वास्तविक श्रुत आराधना है। न्याय-जगत्के जाज्वल्यमान नक्षत्र • डॉ० सुदीप जैन, दिल्ली
स्वनामधन्य विद्वद्वर्य डॉ० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्यका 'स्मृति ग्रंथ' प्रकाशित होने जा रहा है, यह उस महान् व्यक्तित्वके अगाध पाण्डित्य एवं उज्ज्वल कृतित्वके प्रति एक विनम्र श्रद्धाञ्जलि होगी। विलम्बसे ही सही, किन्तु जैन विद्वज्जगत्ने उनकी सुध ली है-यह हर्ष का विषय है।
आप जैसे वर्तमान जगतके विश्रत न्यायवेत्ता मनीषीके द्वारा आदरणीय डॉ० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचाय संदश बीसवीं सदीके न्यायजगतके जाज्वल्यमान नक्षत्रके प्रति जो निष्ठा एवं सूक्ष्म परख पूर्वक उनके प्रति जो भी प्रकाशन किया जायेगा, वह अपने आपमें तथ्यपरक एवं अधिक सार्थक होगा-ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।
भट्टाकलंकदेव प्रणीत 'सिद्धिविनिश्चय' एवं 'न्यायविनिश्चय' जैसे गूढ एवं गम्भीर न्याय ग्रंथोंका हाद डॉ. महेन्द्र कुमारजी की विशद प्रस्तावनाओं के अध्ययन के बिना समझ पाना अत्यन्त दुष्कर प्रतीत होता है। सम्पूर्ण जैनजगत् कि वे अमूल्यनिधि थे । यद्यपि मुझे डॉ० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य के प्रत्यक्ष दर्शनोंका सौभाग्य कभी नहीं मिला, किन्तु उनके गरिमामयी कृतित्वके अवलोकनसे उनके आक्षितिजविस्र्तीण व्यक्तित्व एवं शानगरिमाका भलीभांति बोध होता है ।
वर्तमान प्रसंगमें उन जैसे महान् विद्वान्के प्रति वास्तविक विनयांजलि यही होगी कि हम उनके अनुपलब्ध प्रायः कृतियोंको, तथा यदि कोई उनके द्वारा लिखित/संपादित अनूदित कृति हो, तो उसको भी प्रामाणिक रूपसे डॉ० साहबको गरिमाके अनुरूप प्रकाशित कराया जाय एवं उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्वका विशद अनुशीलनपूर्वक उसे भी पुस्तकाकार प्रकाशित किया जाये।
इस सूअवसर पर मैं भी उन महान् न्यायविद् विद्वद्वरेण्यके प्रति अपनी विनम्र प्रणामाञ्जलि प्रस्तुत करता हूँ।
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