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३६ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थे
के क्षेत्रमें उनकी विशिष्ट सेवाएँ हैं। डॉ० भागेन्दुजीका अध्ययन सागर (म० प्र०) के श्रीगणेश जैन महाविद्यालय तथा सागर विश्वविद्यालय में हुआ ।
जैन विद्याओं पर अनुसन्धान निर्देशन हेतु विख्यात डॉ० 'भागेन्दु' जी सम्प्रति आप मध्यप्रदेश संस्कृत अकादमीके सचिव हैं । आपके निर्देशन में कई शोधार्थियोंको जैन विषयों पर पी-एच० डी० की उपाधि हो चुकी है । डॉ० भागेन्दुजी अखिल भारतीय स्तरकी अनेक संस्थाओं, शोध संस्थानों और महाविद्यालयोंसे निकटतः सम्बद्ध हैं । आप कुशल लेखक, यशस्वी संपादक, सफल प्राध्यापक और अच्छे वक्ता हैं । आपकी प्रसिद्ध कृतियाँ - देवगढ़ की जैन कलाका सांस्कृतिक अध्ययन, भारतीय संस्कृतिमें जैनधर्मका योगदान, जैनधर्मका व्यावहारिक पक्ष : अनेकान्तवाद, अतीत के वातायनसे आदि हैं । आपने अनेक कृतियोंका सम्पादन भी किया है । साहित्याचार्य डॉ० पन्नालाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ के प्रधान-सम्पादक और संयोजक डॉ० भागेन्दुजी रहे हैं ।
प्रस्तुत स्मृति ग्रन्थ के सम्पादन में आपकी भूमिका नितरां प्रशंसनीय है ।
डॉ० कस्तूरचन्द्र कासलीवाल
राजस्थान के जैन ग्रन्थ भण्डारोंमें सुरक्षित महनीय साहित्यको उजागर करके प्राचीन वाङ्मय विशेषतः जैन अनुसन्धान के अनेक संभावित पक्षोंका उद्घाटन करनेवाले डॉ० कासलीवालका जन्म ८ अगस्त १९२० ई० को जयपुरके निकट हुआ । संस्कृत, प्राकृत और हिन्दीके ५०० से अधिक ग्रंथोंका परिचय तथा प्रशस्ति प्रकाशित करके उन्होंने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। आप इतिहासरत्न, विद्यावारिधि आदि उपाधियोंसे सम्मानित किये गये हैं । अनेक ग्रन्थोंके प्रणेता महावीर ग्रंथ अकादमीके माध्यम से अलभ्य - अप्रकाशित साहित्यको प्रकाशित करनेवाले डॉ० कासलीवालजी अनेक अभिनन्दन ग्रन्थोंका कुशलतापूर्वक संपादन कर चुके हैं ।
विवेच्य 'स्मृति ग्रन्थ' के सम्पादन कार्य में आपके सुदीर्घ अनुभव तथा सहज प्रकृतिका लाभ निरन्तर प्राप्त हुआ है ।
डॉ० सागरमल जैन
डॉ० सागरमल जैनका जन्म सन् १९३२ में शाजापुर में हुआ । १८ वर्षकी अवस्थामें ही आप व्यावसायिक कार्य में संलग्न हो गये । व्यवसायके माथ-साथ आपका अध्ययन भी कुछ व्यवधानों के साथ चलता रहा । आपने व्यापार विशारद, जैन सिद्धान्त विशारद, साहित्यरत्न और एम० ए० की उपाधियाँ प्राप्त कीं । एम० ए० ( दर्शन ) आपने वरीयता सूची में प्रथम स्थान प्राप्त किया और कला संकाय में द्वितीय स्थान प्राप्त कर रजत पदक प्राप्त किया। उसके पश्चात् अध्ययनकी रुचिको निरन्तर जागृत बनाये रखने हेतु व्यवसायसे पूर्ण निवृत्ति लेकर शासकीय सेवामें प्रवेश किया और रीवा, ग्वालियर और इन्दौरके, विद्यालयोंमें दर्शनशास्त्र के अध्यापक तथा हमीदिया महाविद्यालय, भोपाल में दर्शन विभाग के अध्यक्ष रहे । सम्प्रति आप पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसीके निदेशक एवं 'आगम अहिंसा एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुरके मानद् निदेशक हैं । 'श्रमण' त्रेमासिकके प्रधान सम्पादक हैं । जैन विद्या के क्षेत्र में आपको प्रतिभाको सदैव सम्मान मिला है । आप अनेक विश्वविद्यालयों में अध्ययन - परिषद्, कलासंकाय एवं विद्यापरिषद् के सदस्य रहें हैं। आपने जैन, बौद्ध और गीताके आचार दर्शन पर पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त की
१) महा
। आपके
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