________________
३८० : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ
श्रमणनायक बोले- भद्र सद्दाल, यदि यही है तो घड़ोंका फूटना भी इस समय नियत था, इस विचारेका क्या दोष ?
सद्दाल अपनी ही कुयुक्तिके जाल में फँस चुका था । वह दबी जबानसे बोला
"भन्ते, यदि यह थोड़ी भी सावधानीसे यहाँसे बचकर चला जाना तो घड़े न फटते ।" इसने तो मेरा सर्वनाश ही कर दिया ।
श्रमणनायकने आदेशक स्वरसे कहा- सोचो, अच्छी तरह सोचो, क्या नियतिमें किसीका भो कुछ कर्तृत्व हो सकता है ? तुम्हीं बताओ, तुम इन घड़ोंको और सुन्दर और कलापूर्ण बना सकते थे ?
"क्यों नहीं ? यदि श्रम और समय लगाता तो और भी सुन्दर बना सकता था ।" सद्दालने कलाके अभिमानसे कहा ।
"तो क्या पुरुषार्थ और यत्नसे कुछ भी हेर फेर संभव है ?" श्रमणनायकने पूछा । यही तो मुझे संशय है कि "यदि पुरुषार्थसे कुछ हो सकता है तो मैं पाता ? भगवन्, आप तत्त्वज्ञ और तत्वदर्शी हैं, मुझे इसका रहस्य समझाइये | भ्रान्त हो रही है ।
श्रमणनायकने सान्त्वना देते हुए गम्भीर वाणी में कहा - भद्र, संसारके पदार्थों के कुछ परिणमन नियत हैं और कुछ अनियत । प्रत्येक पदार्थकी अपनी-अपनी द्रव्य शक्तियाँ नियत हैं, इनमें न एक कम हो सकती है और न एक अधिक । कुछ स्थूल पर्यायशक्ति से साक्षात् सम्बन्ध रखनेवाले परिणमन भी नियत हो सकते हैं ? देखो, घट, कपड़ा, पानी, आग सभी पुद्गल के परिणमन हैं पर हर एक या घड़ा नहीं बन सकता । मिट्टीसे ही घड़ा बनेगी और सूतसे ही कपड़ा । परमाणु कपास के पेड़ के द्वारा रुई बनकर परम्परासे कपड़ा भी बन जायें और सूत भी सड़कर मिट्टी के आकार में घड़ा बन जाय, पर साक्षात् उन पदार्थोंने घड़ा और कपड़े पर्यायका विकास नहीं हो सकता । रेत में घट बननेकी उस समय योग्यता नहीं है । अतः वह मिट्टीकी तरह घड़ा नहीं बन सकती । जब तुम मिट्टीका पिंड बनाते हो तो क्या यह समझते हो कि इतने मिट्टीपरमाणुओंका घड़ा बनना या सकोरा बनना नियत है ? सीधी बात तो यह है कि - मिट्टीके पिडमें उस समय सकोरा, घड़ा, प्याला आदि अनेक पर्यायों के विकासकी योग्यताएँ हैं । यह तुम्हारे पुरुषार्थ का प्रबल निमित्त है जो उस समय पिंडसे सुन्दर या असुन्दर घड़े की ही पर्यायका विकास हो जाता है, सकोरा, प्याला आदि पर्याय योग्यताएँ अविकसित रह जाती हैं । संक्षेप में जगत् के नियतानियतत्व की व्याख्या इस प्रकार है
रेतका घड़ा क्यों नहीं बना मेरी बुद्धि इस समय उद्
१ - प्रत्येक द्रव्यकी मूल द्रव्य शक्तियाँ नियत हैं । उनकी संख्या में न्यूनाधिकता कोई नहीं कर सकता । वर्त - मान स्थूल पर्याय के अनुसार इन्हींमेंकी कुछ शक्तियाँ प्रकट होती हैं और कुछ अप्रकट । इन्हें पर्याययोग्यता कहते हैं ।
पुद्गल स्कन्ध हर समय कपड़ा यह दूसरी बात है कि मिट्टी के
२ - यह नियत है कि चेतनका अचेतन या अचेतनका चेतन रूपसे परिणमन नहीं हो सकता ।
३ - यह भी नियत है कि एक चेतन या अचेतन द्रव्यका दूसरे सजातीय चेतन या अचेतन द्रव्य रूपसे परिणमन नहीं हो सकता ।
Jain Education International
४ - यह भी नियत है कि दो चेतन मिलकर एक संयुक्त सदृश पर्याय उत्पन्न नहीं कर सकते जैसे कि अनेक पुद्गल परमाणु मिलकर अपनी संयुक्त सदृश घट पर्याय उत्पन्न कर लेते हैं ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org