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२४२ : डॉ. महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ प्रवेश करती हैं। सीता नदी ब्रह्मसदनकेसर, अचल आदि पर्वतोंके शिखरोंसे नीचे-नीचे होकर गन्धमादन पर्वतके शिखरपर गिरकर भद्राश्व क्षेत्रमें बहती हुई पूर्वमें क्षार समुद्र में मिलती है। इसी प्रकार चक्षु नदी माल्यवान् पर्वतके शिखरसे निकलकर केतुमाल क्षेत्र में बहती हुई समुद्र में मिलती है। भद्रा नदी मेरुके शिखर से निकलकर शृंगवान पर्वतके शिखरसे होकर उत्तरकुरुमें बहती हुई उत्तरके समुद्र में मिलती है। अलकनन्दा नदी ब्रह्मसदन पर्वतसे निकलकर भारतक्षेत्रमें बहती हुई दक्षिणके समुद्रमें मिलती है। इसी प्रकार अनेक नद और नदियां प्रत्येक क्षेत्रमें बहती हैं। भारतवर्ष ही कर्मक्षेत्र है। शेष आठ क्षेत्र स्वर्गवासी पुरुषोंके स्वर्गभोगसे बचे हुए पुण्योंके भोगनेके स्थान हैं।
अन्य द्वीपोंका वर्णन-जिस प्रकार मेरु पर्वत जम्बद्वीपसे घिरा हुआ है उसी प्रकार जम्बद्वीप भी अपने ही समान परिमाण और विस्तारवाले खारे जलके समुद्रसे परिवेष्टित है । क्षार समुद्र भी अपनेसे दूने प्लक्षद्वीपसे घिरा हुआ है । जम्बूद्वीपमें जितना बड़ा जामुनका पेड़ है उतने ही विस्तारवाला यहाँ प्लक्ष, ( पाकर ) का वृक्ष है। इसीके कारण इसका नाम प्लक्षद्वीप हुआ। इस द्वीपमें शिव, यवस, सुभद्र, शान्त, क्षेम, अमृत और अभय ये सात क्षेत्र है । मणिकूट, वज्रकट, इन्द्रसेन, ज्योतिष्मान, सुपर्ण, हिरण्यष्ठीव और मेखमाल ये सात पर्वत हैं । अरुण, नम्ण, आगिरसी, सावित्री, सुप्रभ्राता, ऋतम्भरा और सत्यम्भरा ये सात नदियाँ है।
प्लक्षद्वीप अपने ही समान विस्तारवाले इक्षुरसके समुद्रसे घिरा हुआ है। उससे आगे उससे दुगुने परिमाणवाला शाल्मली द्वीप है जो उतने ही परिमाणवाले मदिराके सागरसे घिरा हआ है। इस द्वीपमें शाल्मली (सेमर) का वक्ष है जिसके कारण इस द्वीपका नाम शाल्मलीद्वीप हआ। इस द्वीपमें सुरोचन, सौमनस्य, रमणक, देववर्ष, पारिभद्र और अविज्ञात ये सात क्षेत्र है । स्वरस, शतशृंग, वामदेव, कुन्द, मुकुन्द, पुष्पवर्ष और सहस्रश्रुति ये सात पर्वत हैं। अनुमति, सिनीवाली, सरस्वती, कुहु, रजनी, नन्दा और राका ये नदियाँ है।
मदिराके समुद्रसे आगे उसके दूने विस्तारवाला कुशद्वीप है। यह द्वीप अपने ही परिमाणवाले घृतके समुद्रसे घिरा हुआ है । इसमें एक कुशोंका झाड़ है इसीसे इस द्वीपका नाम कुशद्वीप है । इस द्वीपमें भी सात क्षेत्र है, चक्र, चतुःशृंग, कपिल, चित्रकूट, देवानीक, ऊर्वरोमा और द्रविण ये सात पर्वत हैं। रसकूल्या, मधुकुल्या, मित्रवृन्दा, देवगर्भा, घृतच्युता, और मन्त्रमाला ये सात नदियाँ हैं ।
घृत समुद्रसे आगे उससे द्विगुण परिमाणवाला क्रौञ्चद्वीप है। यह द्वीप भी अपने समान विस्तारवाले दूधके समुद्रसे घिरा हुआ है । यहाँ क्रौञ्च नामका एक बहुत बड़ा पर्वत है उसीके कारण इसका नाम क्रौञ्चद्वीप हुआ। इस द्वीपमें भी सात क्षेत्र है। शुक्ल, वर्धमान, भोजन, उपबहिण, नन्द, नन्दन और सर्वतोभद्र ये सात पर्वत हैं । तथा अभया, अमृतोद्या, आर्यका, तोर्थवती, वृतिरूपवती, पवित्रवती और शुक्ला ये सात नदियाँ हैं ।
इसी प्रकार क्षीरसमुद्रसे आगे उसके चारों ओर बत्तीस लाख योजन विस्तारवाला शाकद्वीप है जो अपने ही समान परिमाणवाले मठेके समुद्रसे घिरा हुआ है । इसमें शाक नामका एक बहुत बड़ा वृक्ष है वही इस द्वीपके नामका कारण है। इस द्वीपमें भी सात क्षेत्र, सात पर्वत तथा सात नदियाँ हैं।
इसी प्रकार मठेके समुद्रसे आगे उससे दूने विस्तारवाला पुष्कर द्वीप है । वह चारों ओर अपने समान विस्तारवाले मीठे जलके समुद्रसे घिरा हुआ है। वहाँ एक बहुत बड़ा पुष्कर ( कमल ) है जो इस द्वीपके नामका कारण है। इस द्वीपके बीचोंबीच इसके पूर्वीय और पश्चिमीय विभागोंकी मर्यादा निश्चित करने
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