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४ / विशिष्ट निबन्ध : २३९ अर्धरात्रि, सूर्यास्त, मध्याह्न और सूर्योदय होते हैं, अर्थात् जिस समय जम्बूद्वीपमें मध्याह्न होता है उसी समय उत्तरकुरुमें अर्धरात्रि, पूर्वविदेहमें सूर्यास्त और अवरगोदानीयमें सूर्योदय होता है । चन्द्रमाकी विकलांगताका दर्शन सूर्य के समीप होनेसे तथा अपनी छायासे आवृत्त होनेके कारण होता है ।
मेरुके चार विभाग । ये चारों विभाग क्रमशः दस हजार योजनके अन्तरालसे ऊपर हैं । पूर्व में पहिले विभागमें करो पाणि यक्ष रहते हैं । इनका राजा धृतराष्ट्र है । दक्षिण में द्वितीय भाग में मालाधर यक्ष रहते हैं । इनका राजा विरुढक है। पश्चिममें तीसरे भाग में सदामद देव रहते हैं । इनका राजा विरूपाक्ष है । उत्तरमें चौथे भागमें चातुर्महाराजिक देव रहते हैं । इनका राजा वैश्रवण है । मेरुके समान अन्य सात पर्वतों में भी देव रहते हैं ।
त्रायस्त्रिश स्वर्गलोकका विस्तार ८०००० योजन है । वहाँ चारों दिशाओंके बीच में वज्रपाणिदेव रहते हैं । त्रास्त्रिशलोकके मध्यभागमें सुदर्शन नामका सुवर्णमय नगर है । इस नगर के मध्यमें वैजयन्त नामका इन्द्रका प्रासाद है । यह नगर बाह्य भागमें चार उद्यानोंसे सुशोभित है । इन उद्यानोंकी चारों दिशाओंमें बीस योजनके अन्तरालसे देवोंके क्रीडास्थल हैं । पूर्वोत्तर दिग्भाग में पारिजात देवद्रुम हैं । दक्षिण-पश्चिम भागमें सुधर्मा नामकी देव सभा है । त्रायस्त्रश लोकसे ऊपर याम, तुषित, निर्माणरति, और परनिर्मितवशवर्ती देव विमानोंमें रहते हैं । महाराजिक और त्रास्त्रिशदेव मनुष्योंके समान कामसेवन करते हैं । याम आलिंगनसे, तुषित पाणिसंयोगसे, निर्माणरति हास्यसे और परनिर्मितवशवर्ती देव अवलोकनसे कामसुखका अनुभव करते हैं । कामधातुमें देव पाँच या दस वर्षके बालक जैसे उत्पन्न होते हैं । रूपधातुमें पूर्ण शरीरधारी और वस्त्र सहित उत्पन्न होते हैं । ऋद्धिबल अथवा अन्य देवोंकी सहायता के बिना देव अपने ऊपर देवलोकको नहीं देख सकते ।
जम्बूद्वीपवासी मनुष्यों का परिमाण ( शरीरकी ऊँचाई ) ३॥ या ४ हाथ है । पूर्वविदेहवासी मनुष्यों का परिणाम ७ या ८ हाथ है। गोदानीयवासियोंका परिमाण १४ या १६ हाथ है । और उत्तर कुरुवासी मनुष्यों का परिमाण २८ या ३२ हाथ है । चातुर्महाराजिक देवोंका परिमाण पावकोश, त्रायस्त्रिशदेवोंका आधाकोश, यामोंका पौनकोश, तुषितोंका एक कोश, निर्माणरतियोंका सवाकोश और परिनिर्मितवशवर्ती देवोंका परिमाण डेड़ कोश है ।
उत्तरकुरुमें मनुष्योंकी आयु एक हजार वर्ष है। पूर्व विदेहमें ५०० वर्ष आयु है । गौदानीयमें २५० वर्ष आयु है । लेकिन जम्बू द्वीपमें मनुष्यों की आयु निश्चित नहीं है । कल्पके अन्तमें दस वर्षकी आयु रह जाती है । उत्तरकुरुमें आयुके बीच मृत्यु नहीं होती है । अन्य पूर्व विदेह आदि द्वीपोंमें तथा देवलोक में बीच में मृत्यु होती है ।
वैदिक परम्परा योगदर्शन- व्यासभाष्यके आधारसे
भुवन विन्यास - लोक सात होने हैं । प्रथम लोकका नाम भूलोक है । अन्तिम अवीचि नरकसे लेकर मेरुपृष्ठ तक भूलोक हैं । द्वितीय लोकका नाम अन्तरिक्ष लोक है । मेरुपृष्ठसे लेकर ध्रुव तक अन्तरिक्ष लोक है । अन्तरिक्ष लोकमें ग्रह, नक्षत्र और तारा हैं । इसके ऊपर स्वर्लोक है । स्वर्लोकके भेद हैं- माहेन्द्रलोक, प्राजापत्यमहर्लोक और ब्रह्मलोक आदि । ब्रह्मलोक के तीन भेद हैं- जनलोक, तपलोक और सत्यलोक । इस प्रकार स्वर्लोकके पाँच भेद होते हैं ।
अवीचिनरकसे ऊपर छह महानरक हैं । उनके नाम निम्न प्रकार हैं- महाकाल, अम्बरी, रौरव, मद्दारौरव, कालसूत्र और अन्धतामिस्र । ये नरक क्रमशः घन ( शिलाशकल आदि पार्थिव पदार्थ ), सलिल,
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