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१६६ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ
वे प्रमेयकमलमार्त्तण्ड ( पृ० ४८७ ) में और भी स्पष्टता से लिखते हैं कि - "ततः सदृश क्रियापरिणामादिनिबन्धनैवेयं ब्राह्मणक्षत्रियादिव्यवस्था — इसलिये यह समस्त ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि व्यवस्था सदृश क्रिया रूप सदृश परिणमन आदिके निमित्तसे ही होती है ।"
बौद्धोंके धम्मपद और श्वेताम्बर आगम उत्तराध्ययनसूत्रमें स्पष्ट शब्दों में ब्राह्मणत्व जातिको गुण और कर्मके अनुसार बताकर उसकी जन्मना माननेके सिद्धान्तका खण्डन किया है
"न जटाहिं न गोत्तेहिं न जच्चा होति ब्राह्मणो । जम्हि सच्चं च धम्मो च सो सुची सो च ब्राह्मणो || न चाहं ब्राह्मणं ब्रमि योनिजं मत्तिसंभवं । " - धम्मपद गाथा ३९३ "कम्मुणा बंभणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ । वईसो कम्मुणा होइ सुद्दो हवाइ कम्मुणा ॥” – उत्तरा० २५।३३ दिगम्बर आचार्यों में वराङ्गचरित्रके कर्ता श्री जटासिहनन्दि कितने स्पष्ट शब्दों में जातिको क्रियानिमित्तक लिखते हैं
"क्रियाविशेषाद व्यवहारमात्रात् दयाभिरक्षाकृषिशिल्पभेदात् । शिष्टाश्च वर्णांश्चतुरो वदन्ति न चान्यथा वर्णचतुष्टयं स्यात् ॥"
"शिष्टजन इन ब्राह्मण आदि चारों वर्णोंको 'अहिंसा आदि व्रतोंका पालन, रक्षा करना, खेती आदि करना, तथा शिल्पवृत्ति' इन चार प्रकारकी क्रियाओंसे ही मानते हैं । यह सब वर्णव्यवस्था व्यवहारमात्र हैं । क्रियाके सिवाय और कोई वर्णव्यवस्थाका हेतु नहीं है ।"
ऐसे ही विचार तथा उद्गार पद्मपुराणकार र विषेण, आदिपुराणकार जिनसेन, तथा धर्मपरीक्षाकार अमितगति आदि आचार्योंके पाए जाते हैं । आ० प्रभाचन्द्रने, इन्हीं वैदिक संस्कृति द्वारा अनभिभूत, परम्परागत जैनसंस्कृतिके विशुद्ध विचारोंका, अपनी प्रखर तर्कधारासे परिसिंचनकर पोषण किया है । यद्यपि ब्राह्मणत्वजातिके खण्डन करते समय प्रभाचन्द्रने प्रधानतया उसके नित्यत्व और ब्रह्मप्रभवत्व आदि अंशोंके खण्डनके लिए इस प्रकरणको लिखा है और इसके लिखने में प्रज्ञाकर गुप्तके प्रमाणवार्तिकालङ्कार तथा शान्तरक्षितके तत्त्व संग्रहने पर्याप्त प्रेरणा दी है परन्तु इससे प्रभाचन्द्रकी अपनी जातिविषयक स्वतन्त्र चिन्तनवृत्ति में कोई कमी नहीं आती । उन्होंने उसके हर एक पहलूपर विचार करके ही अपने उक्त विचार स्थिर किए । प्रभाचन्द्रका समय
- वराङ्गचरित २५।११
कार्यक्षेत्र और गुरुकुल - आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्त्तण्ड, न्यायकुमुदचन्द्र आदिको प्रशस्तिमें 'पद्मनन्दि सिद्धान्त' को अपना गुरु लिखा है | श्रवणबेलगोलाके शिलालेख ( नं० ४० ) में गोल्लाचार्य के शिष्य पद्मनन्दि सैद्धान्तिकका उल्लेख है । और इसी शिलालेखमें आगे चलकर प्रथिततर्क ग्रन्थकार, शब्दाम्भोरुहभास्कर प्रभाचन्द्रका शिष्यरूपसे वर्णन किया गया है। प्रभाचन्द्र के प्रथिततर्कग्रन्थकार और शब्दाम्भोरुहभास्कर ये दोनों विशेषण यह स्पष्ट बतला रहे हैं कि ये प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र और प्रमेयकमलमार्त्तण्ड
१. देखो - न्यायकुमुदचन्द्र, पृ० ७७८, टि० ९ । २. जैन शिलालेख संग्रह माणिकचन्द्रग्रन्थमाला ।
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