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१४२ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ नाम विश्वरूप भी था । इन्होंने तैत्तिरीयोपनिषद्भाष्यवार्तिक, बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्यवार्तिक, मानसोल्लास, पञ्चीकरणवार्तिक, काशीमतिमोक्षविचार, नैष्कर्यसिद्धि आदि ग्रन्थ बनाए हैं। आ० विद्यानन्द ( ईसाकी ९वीं शताब्दी ) ने अष् सहस्री (पृ० १६२) में बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्यवार्तिकसे 'ब्रह्माविद्यावदिष्टं चेन्ननु' इत्यादि कारिकाएँ उद्धृत की है। अतः इनका समय भी ईसाकी ९वीं शताब्दीका पूर्वभाग होना चाहिए । ये शङ्कराचार्य ( ई० ७८८ से ८२० के साक्षात् शिष्य थे। आ० प्रभाचन्द्रने प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० ४४४५ ) तथा न्यायकुमुदचन्द्र ( पृ० १४१ ) में ब्रह्मवादके पूर्वपक्षमें इनके बृहदारण्यकोपनिषद्भाष्यवार्तिक ( ३।५।४३-४४ ) से “यथा विशुद्धमाकाश" आदि दो कारिकाएँ उद्धृत का हैं।
भामह और प्रभाचन्द्र-भामहका काव्यालङ्कार ग्रन्थ उपलब्ध है। शान्तरक्षितने तत्त्वसंग्रह (१०२९१) में भामहके काव्यालंकारकी अपोहखण्डन वालो 'यदि गौरित्ययं शब्दः" आदि तीन कारिकाओंकी समालोचना की है। ये कारिकाएँ काव्यालंकारके ६वें परिच्छेद ( इलोक० १७-१९ ) में पाई जाती है । तत्त्वसंग्रहकारका समय ई० ७०५-७६२ तक सुनिर्णीत है। बौद्धसम्मत प्रत्यक्षके लक्षणका खण्डन करते समय भामहने ( काव्यालंकार ५।६ ) दिङ्नागके मात्र ‘कल्पनापोढ' पदवाले लक्षणका खण्डन किया है, धर्मकीर्ति के 'कल्पनापोढ और अभ्रान्त' उभयविशेषणवाले लक्षणका नहीं। इससे ज्ञात होता है कि भामह दिङ्नागके उत्तरवर्ती तथा धर्मकीर्तिके पूर्ववर्ती है। अन्ततः इनका समय ईसाकी ७वीं शताब्दीका पूर्वभाग है। आ० प्रभाचन्द्रने अपोहवादका खंडन करते समय भामहकी अपोहखण्डनविषयक "यदि गौरित्ययं' आदि तीनों कारिकायें प्रमेयकमलमार्तण्ड (प. ४३२ ) में उद्धृत को हैं। यह भी संभव है कि ये कारिकाय सीधे भामहके ग्रन्थसे उद्धृत न होकर तत्त्वसंग्रहके द्वारा उद्धृत हुई हों।
बाण और प्रभाचन्द्र-प्रसिद्ध गद्यकाव्य कादम्बरीके रचयिता बाणभट्ट, सम्राट हर्षवर्धन ( राज्य ६०६ से ६४८ ई०) की सभाके कविरत्न थे । इन्होंने हर्षचरितकी भी रचना की थी। बाण, कादम्बरी और हर्षचरित दोनों ही ग्रन्थोंको पूर्ण नहीं कर सके। इनकी कादम्बरीका आद्यश्लोक "रजोजुषे जन्मनि सत्त्ववृत्तये" प्रमेयकमलमार्तण्ड ( पृ २९८ ) में उद्धृत है । आ० प्रभाचन्द्रने वेदापौरुषेयत्वप्रकरणमें ( प्रमेयक० पृ० ३९३ ) कादम्बरीके कर्तृत्वके विषयमें सन्देहात्मक उल्लेख किया है--"कादम्बर्यादीनां कर्तविशेष विप्रतिपत्तेः"-अर्थात कादम्बरी आदिके कत्ताक विषयमें विवाद है। इस उल्लेखसे ज्ञात होता है कि प्रभाचन्द्रके समयमें कादम्बरी आदि ग्रन्थोंके कर्ता विवादग्रस्त थे। हम प्रभाचन्द्रका समय आगे ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दी सिद्ध करेंगे।
माघ और प्रभाचन्द्र-शिशुपालवध काव्यके रचयिता माघ कविका समय ई० ६६०-६७५ के लगभग है।' माघकविके पितामह सुप्रभदेव राजा वर्मलातके मन्त्री थे । राजा वर्मलातका उल्लेख ई० ६२५ के एक शिलालेखमें विद्यमान है अतः इनके नाती माघ कविका समय ई० ६७५ तक मानना समचित है। प्रभाचन्द्रने माघकाव्य (१।२३ ) का "युगान्तकालप्रतिसंहृतात्मनो' श्लोक प्रमेयकमलमार्तण्ड (पृ० ६८८ ) में उद्धृत किया है । इससे ज्ञात होता है कि प्रभाचन्द्रने माघकाव्यको देखा था।
अवैदिकदर्शन अश्वघोष और प्रभाचन्द्र-अश्वघोषका समय ईसाका द्वितीय शतक माना जाता है। इनके बुद्धचरित और सौन्दरनन्द दो महाकाव्य प्रसिद्ध है । सौन्दरनन्दमें अश्वघोषने प्रसङ्गतः बौद्धदर्शनके कछ पदार्थों
१. देखो, संस्कृत साहित्यका इतिहास, पृ० १४३ ।
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