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१२६ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति-ग्रन्थ
आधारसे इनका समय सन् ७२० से ७८० तक निश्चित किया है । धर्मकीर्ति तथा उनके शिष्यपरिवार के समयकी अवधि जो दशक निश्चित किए गए हैं, श्री राहुल सांकृत्यायनकी सूचनानुसार उनमें संशोधनकी गंजाइश है । निशोथचूर्णि में दर्शनप्रभावक ग्रन्थोंमें जो सिद्धिविनिश्चयका उल्लेख पाया जाता है, वह सिद्धिविनिश्चय निश्चयतः अकलंककृत ही है और निशीथचूर्णिके कर्त्ता वे ही जिनदासगणि महत्तर हैं जिनने शकसं० ५९८ अर्थात् सन् ६७६ में नन्दीचूर्णिकी रचना की थी। ऐसी दशामें सन् ६७६ के आसपास रची गई निशीथचूर्णिमें अकलंकके सिद्धिविनिश्चयका उल्लेख एक ऐसा मूल प्रमाण बन सकता है जिसके आधारसे न केवल अकलंकका ही समय निश्चित किया जा सकता है, अपितु इस युगके अनेक बौद्धाचार्य और वैदिक आचार्योंके समयपर भी मौलिक प्रकाश डाला जा सकता है ।
वादिराजसूरिका समय सुनिश्चित है । उनने अपना पार्श्वनाथचरित्र शक सं० ९४७ कार्तिक सुदी ३ को बनाया था । ये उस समय चौलुक्य चक्रवर्ती जयसिंहदेवकी राजधानी में निवास करते थे । उनके इस समयकी पुष्टि अन्य ऐतिहासिक प्रमाणोंसे भी होती है । अतः सन् १०२५ के आसपास ही इस ग्रन्थकी रचना हुई होगी । जैन समाजके सुप्रसिद्ध इतिवृत्तज्ञ पं० नाथूराम जी प्रेमीने अपने 'जैन साहित्य और इतिहास' ग्रन्थमें वादिराजसूरिपर साङ्गोपाङ्ग लिखा है जो दृष्टव्य है ।
इस तरह ग्रन्थ और ग्रंथकारके सम्बन्धमें कुछ खास ज्ञातव्य मुद्दों का निर्देश किया गया है ।
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