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(सम्पादकीय वक्तव्यः)
"न्यायाचार्य डॉ० (पं०) महेन्द्रकुमार जैन स्मृति ग्रन्थ को लोकार्पित करते हुए हमें सातिशय प्रसन्नता की अनुभूति हो रही है । यतः सुधीजनों, परमपूज्य सन्तों, राष्ट्र नेताओं, सामाजिक कर्णधारों और विविध क्षेत्रों में अपने प्रशस्त कृतित्व से सम्पूर्ण वसुन्धरा एवं चिन्तना को महिमामंडित करने वालों का गणस्मरण सदैव स्वागतेय है । सधीजनों के गणस्मरण की परम्परा सदर प्राचीन काल से प्रवर्तम है। सुप्रसिद्ध चिन्तक और धर्मशास्त्र-विश्लेषक महाराजा मनु ने सम्मानार्हता के पाँच प्रसंगों का उल्लेख कर 'विद्या' को ही सर्वश्रेष्ठ अभिनन्दनीय निरूपित किया है :
वित्तं बन्धुर्वयः कर्म, विद्या भवति पञ्चमी । एतानि मान्यस्थानानि, गरीयो यद यदुत्तरम् ।।
-मनुस्मृति : २/१३६ और एतदनुसार नीति-मर्मज्ञ का यह कथन भी सुधीजनों के प्रतिनन्दन/गुणस्मरण की ही आशंसा करता
____ 'स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ।' सुधीजनों ने राष्ट्र, समाज, अध्यात्म, धर्म, दर्शन, साहित्य और संस्कृति के विविध पक्षों को सम्वर्धित और सुरक्षित करते हुए उनके सांगोपांग समुनयन हेतु भगीरथ प्रयत्न किये हैं।
प्रत्येक राष्ट्र और राष्ट्रीयता की अभिव्यक्ति उसके दर्शन/चिन्तन/मनन/साहित्य और इनके प्रेणताओं से होती है । युग-युगों से जिन आचार्यों/ऋषियों/मनीषियों ने दृश्य और अदृश्य के प्रति अपनी जिन अनुभूतियों को शब्दों के माध्यम से मूर्तमान किया है और
"अनन्तपारं किल शब्दशास्त्रं, स्वल्पं तथाऽऽयुर्बहवश्च विघ्नाः । सारं ततो ग्राह्यमपास्य फल्गु, हंसैर्यथाक्षीरमिवाम्बुमध्यात् ।।"
-पंचतंत्रम् : कथामुखम्, पद्य ९ के विशेषज्ञों ने अपने स्फूर्त और ओजस्वी चिन्तन को आगामी पीढ़ी द्वारा विश्लेषित और आविष्कृत किये जाने हेतु सुरक्षित कर रखा है, विज्ञान के इस तर्कशील और विकासवादी युग में भी उनके चिन्तन तथा निष्पत्तियाँ निश्चित ही प्रकाश-स्तम्भ का कार्य कर रहे हैं | ऐसे सुधीजन समाज, साहित्य, अध्यात्म, दर्शन, न्यायविद्या, संस्कृति और राष्ट्र की धरोहर होते हैं । उनके जीवन-दर्शन, आस्थाओं, नैतिक मूल्यों, साधनाओं और सार्थक कृतित्व से सम्पूर्ण परिवेश-समाज और राष्ट्र दिशाबोध प्राप्त करता है और ऐसे
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