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३ / कृतियोंकी समीक्षाएँ : ३९
इस युगमें महाराजा सम्प्रति, विक्रमादित्य, सातवाहन, वाग्भट्ट, पादलिप्त, आम और दत्त इन्होंने इस पर्वतराजका समय-समयपर जीर्णोद्धार करवा कर उसका संरक्षण करते रहे । प्रसिद्ध तीर्थोद्धारक श्री जावडि साहने भी इस तीर्थराजका उद्धार करवा कर अजितनाथ स्वामीके मन्दिर में एक तालाबका निर्माण कराया था। इस कल्पमें शत्रुजय तीर्थका उद्धार कराने काले महान आत्माओंके नाम गिनाये हैं। जिनमें इतिहासका फुट भी है। श्री जिनप्रभसूरिने जब इस विविध तीर्थकल्पकी रचना आरम्भ की तो संघ पर राजाधिराज अत्यधिक प्रसन्न हुये इसलिये कल्पका नाम 'राजप्रासाद' भी दिया गया है । श्री जिनप्रभसूरिने इस प्रथम कल्पकी रचना संवत् १३८५ ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्षकी सप्तमीको पूर्ण की थी। इस कल्पमें १३३ संस्कृत पद्योंका भाषानुवाद है। २-रैवतकगिरि संक्षेप कल्प
रैवतकगिरि जिसका दूसरा गिरिनार है के माहात्म्यको बतलाने वाला है। इस कल्पका पूर्वमें पादलिप्त आचार्यने जिस प्रकार वर्णन किया था वज्रस्वामीके शिष्यने पालीतानाका वर्णन किया है उसी प्रकार जिनप्रभसूरिने रैवतकगिरिका वर्णन किया है। २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ ने छत्रशिलाके पास दीक्षा ली थी, सहस्राम्र वनमें केवलज्ञान प्राप्त किया, लक्षा रामवनमें मोक्षमार्गका उपदेश दिया तथा सबसे ऊँची अवलोकन नामक शिखरसे मोक्ष प्राप्त किया । स्वयं श्रीकृष्ण जीने भगवानके तीनों कल्याणकोंमें भाग लिया था। रैवतकगिरि पर और कौनसे मन्दिर आदि है इन सबका प्रस्तुत कल्पोंमें वर्णन मिलता है। ३-श्री उज्जयन्त स्तव
___ इसका नाम उज्जयन्त कल्पके स्थान पर उज्जयन्त स्तव दिया है। रैवतक, उज्जयन्त आदि एक ही शिखरके नाम है। उज्जयन्त गिरनार पर्वतका नाम है जो गुजरात देश में स्थित है। इस पर्वतके किनारे पर बसे हये खंगारगढ़ में श्री ऋषभनाथ आदि अनेक तीर्थंकरोंके चैत्यालय है। काश्मीर देशके निवासी श्री रत्नशाहने कुष्मांडी देवीके आदेशसे भगवान् नेमिनाथकी सुन्दर पाषाण प्रतिमा स्थापित की थी। इस स्तव में २४ पद्य है। ४-उज्जयन्त महातीर्थ कल्प
इस कल्पमें इसी गिरनार पर्वत और ४० पद्योंमें और विशद वर्णन किया गया है । ५-रैवतकगिरि कल्प
इस कल्पमें गिरिनार तीर्थका और विशेष वर्णन है। इतिहासकी दृष्टिसे यह अच्छा कल्प है। श्री जिनप्रभसरिने इसमें कितने पद्य लिखे अथवा गद्यमें ही लिखा इसका कल्पके अध्ययन में पता नहीं चलता है।
इस प्रकार रैवतक कल्प चार छोटे-छोटे कल्पोंमें पूर्ण होता है । ६-श्री पार्श्वनाथ कल्प
इस कल्पमें स्तम्भतक पार्श्वनाथ तीर्थके उद्भवका वर्णन किया गया है। इस कल्पमें ७४ पद्य हैं। भगवान् पार्श्वनाथकी इस प्रतिमाके दर्शनके कारण ही अभयदेवसूरिका रोग दूर हुआ था। ७-अहिछत्रा नगरी कल्प
इस कल्पमें अहिछत्र तीर्थका इतिहास दिया है जिसमें भगवान् पाश्र्वनाथको कैवल्य होनेके पूर्व कमठ द्वारा उपसर्ग किया गया था। उसीका विस्तृत वर्णन है। उपसर्ग स्थल पर ही भगवान पार्श्वनाथकी विराजमान कर दी गयी।
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