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२ : डॉ० महेन्द्रकुमार जैन न्यायाचार्य स्मृति ग्रन्थ
उपराष्ट्रपति द्वारा 'विद्वत्रत्न' की उपाधि द्वारा सम्मानित विद्वान् हैं । आपके पुत्र डॉ० सत्यप्रकाश जैन समाजसेवी व लेखक हैं ।
मेरी रुचिको देखकर श्री महेन्द्रकुमारजीका मुझ पर कुछ विशेष स्नेह था और वे मुझे निरन्तर आगे बढ़ना देखना चाहते थे । इसलिए छुट्टियों में प्रायः मुझे अपने पास बुला लेते थे । गर्मीके दिनोंमें शामको माननीय पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्री, पं० फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री, पं० महेन्द्रकुमारजी तथा मैं दुर्गाकुण्ड के पार्क में जाकर बैठते थे । विविध विषयों पर गम्भीर चर्चा होती थी । मैं सभी बातोंको ध्यान से सुनकर अनेक नई जानकारियाँ ग्रहण करता था और यही उनका उद्देश्य था ।
सन् १९५९ में उनका आग्रह था कि मैं गर्मी की छुट्टी में बनारस आ जाऊँ। वहाँ दोनों जैनधर्म पर एक पुस्तक लिखेंगे । पर छुट्टी होने पर मैं वहाँ पहुँचता, इसके पूर्व ही २० मईको उनका स्वर्गवास हो गया और वह विचार यों ही रह गया ।
वे वास्तव में महान् थे । उनमें अनेक विशेष गुण थे जिनके कारण वे सर्व सम्मान प्राप्त करते थे । जीवन के सभी क्षेत्रों में वे रुचिपूर्वक भाग लेते तथा नाम व यश प्राप्त करते थे। उनका निधन साहित्य और समाजके साथ परिवार एवं सम्बन्धियोंके लिए अपूरणीय क्षति थी ।
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