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खरतर गरछके आचार्यों सम्बन्धी कतिपय अज्ञात ऐ० रचनाएँ: ३१
श्रीतरुणप्रभसरिकृत श्रीजिनलब्धिसूरि-चहुत्तरी
सिरि मुणिवइ जिणचंदं भविकवल विलासयं सरेऊण सिरि जिणलद्धि रिसीसं तस्स सुसीसं थुणामि अहं ॥ १ ॥ वियड़े नायकवाड़े नगोव एगोवए जणोवाड़े हट्टेधरेकवाडे जत्थ न दत्ते तहिं माडे ॥२॥ देसे दुग्ग निवेसे सिरि जेसलमेरु पुरवरे आसि । राया जायव वंसे नवो निसीहो जयतसीहो ॥ ३ ॥ सिरि पासनाह भवणं भुवणत्तय कणय भूसणं तत्थ जिण विंब रयण सोहं सदंड कल हूय कल कलसं ॥ ४ ॥ दिह्रमि जम्मि दिट्ठा सासय जिण भवण वन्निया सक्खा जं तस्सेगग रूवग सरूवसु निरूवणं नासि ॥५॥ ऊएस वंस रुक्खे बलक्ख नवलक्ख साहपरिणाहे अच्चब्भुय महिरूढो धणसीहो सावओ रूढो ॥६॥ खेताहीथी रयणं धीरयणजीए सील कंति जुयं सयलासा मुपयासं सुपया संतोसयं जायं ॥७॥ अन्न दिणे सा जाया संजाया तस्स साहुसुयगब्भा आवंदु गंडथलया वर वसु गब्भाव सुमइच्छं ।। ८॥ सा सुयणू सासुयणू संसूयणू तप्पभावओ हया सुह सुमणा सुह सुमणा सुह समणो सेवणा निरथा ॥१॥ सुन रसानल ससंहर विक्कम नरनाह विरिस मग्गसिरि सुद्ध दुवालस दिवसे उववन्नो तेसि वर पुत्तो ॥१०॥ सञ्चउरे वर नयरे जम्मो जस्सेह माय ताय हरे। तेणं अणुहारेणं सो जाओ माय भाय सुहो॥ ११ ॥ भरणी गए ससंके सुह गहसंगे कुरंग वइ लग्गे लक्खणवंतो पुत्तो लक्खणसीहो कओ तेहिं ॥ १२॥ आरुग्ग भग्ग सोहग्ग कंति मुह सुगुण वग्ग संसग्गा बालत्तणेवि माया पियराणं नयण घण सारे॥१३॥ भवसायर बोहित्था अवाहित्था नाण दंसणगुणोसु अणहिलपुरम्म पत्ता विहरंता सूरि जिणचंदा ॥ १४॥
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