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मानव - जीवन
अखिल विश्व में सब से ऊँचाजीवन, मानवता ही सबसे बढकर,
मानव-जीवन है ।
अजर, अमर अक्षय धन है ।
मानव तन पाकर भी जो नर,
जीवन उच्च बना न सका ।
समझा चिन्तामणि पाकर वह
निज-रंकत्व मिटा न सका 1
सज्जन औ, दुर्जन का तर,
स्पष्ट शास्त्र यह कहता है ।
एक प्रशसा सुन हर्पित हो,
एक दुख मे बहता हैं । प्राणों की आहुति देकर भी
दुखियों का दुख दूर करे ।
हानि देखकर पर कीं सज्जन
अपने मन मे झूर मरे ॥
कर रहे ?
शूद्र को मुक्ति नहीं, अफसोस है ! क्या वीर की तौहीन है, यह सोच लो, क्यों कह रहे ?