________________
द्रव्यक्षेत्र कालभावका विवरण खुब गहराई से लिखा गया है। विवेचनमें " सवी जीव करूं शासनरसी इसी भाव दया मन उल्लसी "के विचारोसे जंन शामनकी विशालता प्रकट हुई है। मेक शब्द के कई अर्थ होते हैं-ऐसे स्थानो पर आपते सिद्धांतके अनुसार अर्थ घटाया है। संप्रदायमें रहते हुए भी आप संप्रदायिकतामें नहीं फैस है। इसका ध्यान आपने अपनी रचनाओ मे सर्वत्र रखा है। विद्वताके साथ आपने आत्मीय गुणोका भी विकास किया है, अतः सर्व साधारण जीवोकी दयनीय स्थितिको बतलाने में सफल हुए है। गुरुदेव श्री विद्याविजयजी महाराजके चरगोमें आपने गहरा अभ्यास किया है उसकी प्रतीति मापकी डिग्रियोले होती है । ब्रह्मचारी होने के साथ तपस्वी ज्ञानी-ध्यानी व अभ्यासी है, जिसका प्रमाण आपके भिन्न भिन्न ग्रथ है जिनमे भगवती सूत्र सर्वोपरी लगता है। शासनदेव से प्रार्थना है कि आप चिरायू वन कर शासन-समाज के हितचिंतक बने रहे.
गोडवाइवासियो की भूरि भूरि वन्दना स्वीकारे... सादडी
फूलचद वाफना (राजस्थान)
भूतपूर्व मत्री राज २४-४-७९
व सर्वोदय कार्यकर्ता
....सादर वन्दना ! आपके प्रेषित भगवती सूत्र सार संग्रहका दूसरा भाग अभी प्राप्त हुआ, आपने समय निकाल कर दूसरा भाग इतना जल्दी तैयार करके छपवा दिया, यह प्रसन्नता की बात है। यही तत्परता और सृजनशीलता आपमें बनी रहे यही भावना.... बीकानेर
-~-अगरचंदजी नाहटा ३१-१०-७७