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________________ सरखा अल्प मनष्यरूप कडिाआने तो तारा विना कोनो आश्रर . जगचिंतामणि! त्रिभूवननायक! शिवपुरंमार्ग दायक! भवजलधितरण सहायक ! श्रीजिनशासनचा रुश्रंगार ! अन्तरंगरिपक्षकठार ! वारण वाहन! जित रास्त्र!! भाइभाडु, मातापिता, काका काकी, फुआ फोड, मासामासी, सासुतसरा, भाजभत्रिना, पुत्रक लत्र, आदि हितवांच्छक स्वजन जन स्वार्थ निमित्तेन छे; आखर अवस्थाए कोद कांइ कामनं नथी; जेम मां छी एक नाना मांछलाने पक डेछे तेम का, जडपी अमने झह पवानोज, काइ आजतो कोइ काल, कोई मासे तो कोइ छ मासे, पण आखर मत्य तो छे छे ने छेन. वजमय घरमां वासो वसो के तरणानी झुपडी मां, धन्तरमन्तर शीखी छुमन्तर करी मोटी मोग वि. द्याओ साधन करी पुष्टिकारक रसायन भारोगो,के सु
SR No.011532
Book TitleJain Prarthanamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay
PublisherJain Dharm Pravartak Sabha
Publication Year1885
Total Pages99
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size2 MB
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