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नववा दूषण भय' है— सो जिसने अपना ही भय दूर नहीं किया वह अर्हन्त परमेश्वर कैसे होवे ?
दसवा दूषण ' जुगुप्सा ' है - सो मलीन वस्तु को देख के घृणा करनी-नाक चढानी, सो परमेश्वर के ज्ञान में सर्व वस्तु का भासन होता है । जो परमेश्वर में जुगुप्सा होवे तो वडा दुःख होवे । इस कारण ते जुगुप्सामान अर्हन्त भगवत कैसे होवे ?
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ग्यारवा दूषण ' शोक ' हुँ.
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परमेश्वर नही ।
बारव दूषण
काम' है - सो जो आपही विषयी है, स्त्रियो के साथ भीग करता है, तिस विषयाभिलाषी को कौन बुद्धिमान पुरुष परमेश्वर
मान सकता ?
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चौदवा दूषण भगवन्त कैसे ?
सो जो आप ही शोकवाला है सो
तेरवा दूषण 'मिथ्यात्व ' है – सो जो दर्शनमोहकरी लिप्त है सो
भगवन्त नही ।
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अज्ञान ' है – सो जो आपही मूढ है सो अर्हन्त
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पदरवां दूषण
निद्रा ' है – सो जो निद्रा मे होता है, सो निद्रा मे कुछ नही जानता और अर्हन्त भगवान तो सदा सर्वज्ञ है, सो निद्रावान् कैसे होवे ?
सोलवा दूषण · अप्रत्याख्यान ' है – सो जो प्रत्याख्यान रहित है वोह सर्वाभिलाषी है । सो तृष्णावाला कैसे अर्हन्त भगवन्त हो सके ?
सतारवां और अठारवां-ए दोनो दूषण राग अरु द्वेष है । सो रागवान् द्वेषवान् मध्यस्थ नहीं होता । अरु जो रागी द्वेषी होता है तिसमें क्रोध, मान, माया का सभव है। भगवान तो वीतराग, समशत्रुमित्र, सर्व जीवो पर समबुद्धि, न किसी को दुःखी और न किसी को सुखी करे है । जेकर दुःखी करे तो वीतराग, करुणासमुद्र कभी भी नही हो सकता ।