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पउमचरियं
रुहिर खीरसवण्ण मलसेयविजज्जिय सुरभिगन्ध । देह सलक्खणगुण, रविप्पभ चेव अइविमल ॥३१॥
नयणा फन्दणरहिया, नहकेसाऽवटिया य निद्धाय । जोयणसय ममन्ता, मारीइ विवज्जिओ देसो ॥३२॥
जत्तो ठवेइ चलणे, तत्तो जायति सहसपत्ताइ । फलभरनमिया य दुमा, सामममिद्धा मही होइ ॥३३॥
आयरिससमा धरणी, जायइ इह अद्धमागही वाणी । सरए व निम्मलाओ, दिसाओ रयरेणुरहियामओ ॥३४॥
ठायइ जत्थ जिणिन्दो, तत्थ य सीहासण रयणचित । जोयणघोसमणहर, दुन्दुहि सुरकुसुमवट्ठी य ॥३५।। एव सो मुणिवसहो अट्टमहापाडिहेरपरियरिओ । विहरइ जिणिन्द भाणू, वोहिन्तो भवियकमलाइ ॥३६॥