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________________ (764 ) चिंतमि किंपि धम्मुजसुजेणवि । वडुइ मुच्चुइ पावमलेणवि। अथिरुविढविधणण किं किजई । णासइ अहवइ सइ ण मरिजइ । ठाउं कुडवु सरीरु असारडं। रोय सोय वहु दुक्खहं आइउ । दुक्खइ तिसइ णिच्चु णाडिजई। धमें गप्पइ सीएं भिज्जइ। जरवसेण मिजतउ दीसइ। भंति णाहिफितउ दीसई। कइहि मिदिय हं यम्मिफिदीसइं॥ * * धत्ता।। जो णविमरइ ण झिज्जइं । णवि पीडिजइ । अक्ख उभुवण अभीउ। करमि सुयणसंभावडं। खलसंतावउ । हउं कव्वमउ सरीरु॥२॥ कविचक्कवइ पुव्वगुणवंतउ । धीरसेणु होतउ सुपसिद्धउ। पुणु समत्तजुत्तु परागउं । जेण पमाण गंथु किउचंगउ । देवणंदि बहगण जसभसिउ । जे वायरण जिणेंद पयासिउ । वजसल सुपसिद्धउ मुणिवरु । जेणपमाणगंथु किउ सुंदरु । मुणि महसेणु सुलोयणु जेण । पउमचरिउ मणि रविसेणेण । जिणसणे हरिवंसु पवित्तु । जडिल मुणीण वरंग चरित्तु । दिणयरसेणेंचरिउ अणंगहो । पउमसेणे आइरियइपासहो । अंधसेणु जे अमियाराहणु । विरइयदे सविवज्जियसोहणु । जिणचंदप्पह चरिउ मणोहरु । पावरहिउ धणयत्तु सुसुंदरु । अण्णामि कियपमाइ बहुत्तई । विण्हसेण रिसएण चरित्तइ । सीहणंदि गुरवे अणुवेहा । णरदवणवयारणेहा । सिद्धसेणु जे गेए आगउ । भविः विणोय पयासिउ चंगउ । रामणंदि जे विविह पहाणा। जिण सासाण वह रइय कहाण । असगु महाकइ जेसु मणोहरु । वीरजिणेंदचरिउ कि मुंदा । केत्तिय कहमि सुकइ गुणआयर । गेयकव्वजहिं विरइयसुंदर । सणकुमारु जे विरयउमणहरु । कय गोविंद पव रुसेयंवरु । तहं वक्खइ जिणरक्खिय सावउ । जे जयधवल भुवणि विक्खायउ । सालिहद्द कय जीयउदेदउं । लोयए च उमुह दोण पषिद्धउ । एक्कहि जिणसासणे उछलिय उ । सेढु महाकइ जमुणिम्गलियउ । पउमचरिउ जिंभुवणि पयासिउ । साहुणरहि परवरहि पसंसिउ । हउ जडु तो वि किंपि अब्भासमि । महियले जिणियबुद्धि पयासमि । ॥ धत्ता ॥ सहसकिरणु र इवेवि गयणि चडेवि । तिमिरु असेमुपणासहि । णियसत्तें माणदीवउ जइविसुथोवउ । तोविउजोवि पयासहिं ॥३॥
SR No.011136
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscript in the Central Provinces and Berar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages491
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size36 MB
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