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________________ ( 737 ) तं तुहुंपि चडावहु णिययकव्वे । दिहिहोउणण्णे आसण्णभव्वे ॥ बुद्धीए णण्णु सुरगुरुणमंति । परणण्णहो णउ वइरिय जिणंत्ति ॥ पहुभत्तिए हणु व समाणुदिङ । परणण्णुणवाणरु णरु विसिट्ठ ।। गांगेउ सउच्चेजणियतुहि। पर णण्णुणवइरिहु देइपुट्ठि ॥ धम्मेण जुहिटिल धम्मरत्तु । पर णण्णु पवासदुहेण चत्तु ।। चाएण कण्णु जण दिण्ण चाउ । परणण्णु ण वंधुहु देइ घाउ ॥ कंतीए मणोहरु छणससंकु । परणण्णुहो णउ दीसईकलंकु ॥ गरुयत्तें महि सुविसुद्धचरिउ । पर णण्णु ण किडि दाढाइ धरिउ ॥ सुथिरते मेरुणमंति जोई। पर णण्णु पुरिसु पच्छमु ण होइ ।। सायरु व गहीरु कयायरेहिं । परणण्णु ण मंथिउ सुग्वरेहि ॥ ॥ पत्ता ॥ जो एहउ वण्णिउ वरकइहिं । भावि णियमणे भावहि ॥ तहो णण्णहो केरउ णाउ तुहु । सुललियकब्बे चडावहि ॥ ४ ॥ णाइल्लसीलभट्टारु वयणु । तं आयपणेविणवकमलवाणु । पडिजंपइवियसिरि पुप्फयतु । पडिवजमि णण्णुजि गुणमहंतु । घणु पुणु महुं तणु व तणाउ कहु । धम्मेण णिवद्ध मुएवि सछ। हां कहां कव्वु जिंदंतु पिसणु । वण्णंतु सुयण विप्फुरिय वयणु । दुजणसज्जणहो सहाउ एड्ड । सिहि उण्हउ सीयलु होइ मेहु ।। भो णिसुणि णण्ण कुलकमलसूर । सुरसिहरिधीर पडिवण्णसूर । जिण भाणउ अणताणंत गयणु । तहो मज्झे परिट्ठिउ तिविहु भुअणु। पहिलउ मल्लय संकासुदिट्ठ । वीयउ कुलिसोवमु रिसिहि सिद्ध। तइयउ मुइंद सण्णिहु कहति । अरहंत अरुह भणु किं रहंति । ॥ धत्ता ॥ तइलोकु कमलरुह हरि हरहिं ण धरिउ ण किउ ण णिहियउ । तहिं वहु दीवोवहि मंडियउ । मज्झिउ भुअणु परिट्ठियउ ॥ ५ ॥ इय णायकुमारचारुचरिए णण्णणामंकिए महाकइपुप्फयंतविरइए महा कव्वे जयंधरविवाहकल्लाणवण्णणो णाम पढमो परिच्छेओ सम्मत्तो ॥१॥ End.-~-गोत्तमगणहरए वंसिट्ठउ । सूरिपरंपराए उवइट्ठउ ॥ णायकुमारचरित्तु पयासिउ । इयसिरिपंचमि फलु मइ भासिउ ॥ १ ॥ सोणंदउ जो पढइ पढावइ । सोणंदउ जो लिहइ लिहावइ ॥ सोणंदउ नोविवरि विदावइ । सोणंदउ जो भावें भावइ ॥२॥ णंदउ सम्मइ सासणु सम्मइ । णंदउ पयसुहु णंदउ णरवइ ॥ चिंतिउ चिंतिउ वरिसउ पाउसु । णंदउ णण्णु होउ दीहाउसु ॥ ३ ॥
SR No.011136
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscript in the Central Provinces and Berar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages491
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size36 MB
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