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________________ (759) मणि गण यह दृसियरविगभछि । तहिं जिणहरुपडुपि बिहारु अछि । णिव विक्कमका हो ववगएसु । एयारह संवच्छरसएस ॥ ६ ॥ तहिं केवलचरिउ अमछरेण णयणंदी विरइउ वछरेण । जो पढइ सुणइ भाव लिहेइ | सो सासयसुहु अइरेलहइ ॥ ७ ॥ || घत्ता || णयणंदियहो मुणिंदहो, कुवलयचंदहो णरदेवासुरवंदहो । देउदिणमणिम्मलु भवियहमंगल वायाजिणवरइदह | || ' ० ॥ एछ सुदसणचरिए पंचणमोकारफलपयासयरे माणिक्कणदितइविज्ज सीसणयणंदिणा रइए गईदपरिविच्छरो सुचरिदं थोत्तं तहा मुणिंद सहमंडवत सुविमोक्खवासे गमणमो पयफलं पुणो सयल साहूणागावली इमाण कय वो संधि दोदो सम्मत्तां ॥ ६ ॥ संधि ॥ १२ ॥ इति संवत् १६०५ वर्षे आषाढ वदि १० शुक्रं बलात्कारगणे श्री लक्ष्मीचन्द्राणां शिप्य श्रीसकलकीर्तिन | स्वपरोपकाराय लिखितं । सुदर्शनचरित्र. By विद्यानंदि. Beg - प्रणम्य वृषभदेवं लोकालोकप्रकाशकं । अजितं जितशत्रुघ्नं जित - शक्र-समुद्भवं ॥ १ ॥ संभवं भवनाशञ्च स्तुवेऽहमभिनंदनं । सर्वज्ञं सर्वदर्शश्च सप्ततत्त्वोपदेशकं ॥ २ ॥ * * * कवित्त्व- नलिनी-ग्राम-प्रबोधनदिवा- मणि । कुंदकुंदाभिधं नौमि मुनीन्द्रं महिमास्पदम् ॥ २१ ॥ जिन / कसप्ततत्त्वार्थसूत्रक ती कवीश्वर: । उमास्वामिमुभिर्नित्यं कुर्यान्मे ज्ञानसंपदाम् ॥ २२ ॥ स्वामि- समन्तभद्राख्यो मिथ्यातिमिरभास्करः । भव्यपद्मौघशंकर्त्ता जीयान्मे भावितीर्थकृत् ॥ २३ ॥ विप्रवेश / प्रणीः सूरिः पवित्रः पत्रिकेसरी | संजयाज्जिनपादाब्जसेवनैकमधुव्रतः ॥ २४ ॥ यस्य वाक्किरणै र्नष्टा वौद्धौधा : कौशिका यथा । मास्करस्योदये स स्यादकलंक : श्रियै कविः ॥ २५ ॥
SR No.011132
Book TitleCatalogue of Sanskrit and Prakrit Manuscripts In the Central Provinces and Berar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Bahaddur Hiralal
PublisherCentral Provins and Berar
Publication Year
Total Pages887
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationCatalogue
File Size27 MB
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