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( 755) घोरु वीरु तव चरणु चरेप्पिणु । चउ विहु देवागमणु करेप्पिणु । विण्णिवि सुहम सुहाइ चएप्पिणु । गय सिव लोइ सरीरु मुए प्पिणु॥३॥ भविसयत्तु पुणु सुरु हेमंगउ । सिरि वड्णु हाइवि सिद्धिहि गउ । साभविसाणुरूवतणु मेल्लिवि । रयण चूडुलसुरलोउ समिल्लिवि ॥ ४ ॥ जाउ नंदिवट्टणु घर धारउ । पण हत सासय सिद्ध भडार! वसिविघरासमि हल्लुत्तालें । विरइ एउ चरिउ धणवाले ॥ ५॥
विहिखंडिहि वावीसहि संधिहि । परिचिंतिय णिय हे उणिवंधिहि । ॥ धत्ता ॥ धकडवणिवंसे । गाएसरह समभवेण ।
धणसिारदेविसुएण । विरइउ सरसइसंभवण ॥ ॥ ६ अहो लोयहु मुयपंचमिविहाणु । एउजतं चितिय सुहणिहाणु। दूरयरपणासियपावरणु । इह जासा वुच्चइ कामधेणु । ॥ ७ ॥ फलु देइ जहिंच्छिउ मच्चलोइ । चिंतामणि बुच्चइतेण सोइ । इहजासादुच्चइ भवण संति । अह मक्खिहुसुह से.वा. पंति ॥ ८ ॥ णर णागिहि विग्घइ अवह इ । जोज मम्गइ तहुतंजि देइ । निव्वाह, जोणिग सिविधरण । सो पुण्णवंतु किं वित्थरण ॥ ९॥ उववास करइ जो सत्त सहि । उज्झामणेत हु सुहितुष्टिष्टि ।
जइभजइ अंतरि विग्न हाइ । तहुसहहाणि फल तंजि होइ ॥ १०॥ ॥पत्ता ॥ अहो किं वहुवायावित्थरण । एकविचित्तमहंतरेण ।
अणुमोएं ताहे । तिहु संपण्णगुणंतरणः ॥ १० ॥ ११ ॥ अरि उरि अइरावद दीहथि । धणयत्तह गेहिणि धणयलच्छि । उज्जमियताइ चिरुसंजुएण । भाविय धणमित्त तहिएण ॥ १२॥ तहिं कित्तिसेण णामुज्जयाइ । अणुमाइयवज्जो यर सुआइ । तहु फलेण ताइ तिणिमि जणाइ । चउथइ भवि सिव लायहु गयाइ । १३ । पहिलह धणयत्तहो धणयदित्ति । इयाई विण्णिवि धणमित्तु कित्ति । विजइ भवि पंकय सिरि रूव । सुउभविसयत्तु भविसाणुरूव ॥ १४ ॥ तियलिंगु हणिवि तिणिवि सुतेय । पहचूल रयण चुलाए देव । तीयइ सविसत्तु विकणयतेउ । हुउदहमइ तहिनि विमाणुदेउ ॥ १५॥
चउथइ भवि सुयपंचमिफलेण । णिहट्टकम्मु झाणाणलेण । ॥पत्ता ॥ णिसुणत पढंत । परिचितं तहं अप्पाहिय ।
धणवालें तेण । पंचमि पंचपयारकिय ॥ १६ ॥ इय भविसयतकहा बावीसो संधी पारछेउँ समना ॥ संधिः ॥ २२॥ इतिश्री भविष्यदत्तपंचमी समाप्तं । ग्रंथ संख्या । ३५००॥