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पेन स्मरास्वनिकरै रपराजितेन सिद्धिर्वध्रुवमबोधिपराजितेन। संबद्धधर्मसुधियाकविराजमानः क्षिप्रं करोतु यशसा स विराजमानः ॥२॥
End.-तुष्टिं देशनया जनम्यमनसे येनस्थितंदित्सता
सर्व वस्तु विजानता शमवता येनक्षता कृच्छ्रता । भव्यानंदकरण येनभहतांतत्त्व-प्रणीतिः कृता तापं हंतु स मे जिनः शुभधियां तातः सतामीशिनाः ॥२५॥ इति देवनंदकृतिरित्यंकगर्भषडारचक्रमिदं समाप्तम् ॥
श्रावकाचार.
। देवसेन. Beg:- ॐनमः श्री पार्श्वनाथाय धरणेंद्रपद्मावतीसहिताय ।
णमकारेपिणुपंचगुरु दृरि दलिय दुहकम्मु । संखेवेपयडक्खरहि अक्खमि सावयधम्मु ॥ १ ॥ दुजणु सुहियउह उजगि सुयणु पयासिउजण । अमियउविसु वासरजमह जिम मरगउ कच्चेण ॥ २॥ जिह समिला सायर गयहि दुलहु जुव्वहरंतु । तिहजीवह भवजल गयह मणुवत्तणु संबंध ।। ३ ।। सुहुयारउ मणुयत्तणह तं सुह धम्मायत्तु । धम्मुविरेजिय तं करहि जंअरहंत इवुत्तु ॥ ४ ॥ अरहंतु वि दोसहरहिय जासुविकेवल णाणु । णाया मुणिय कालत्तयह वयणुवितस्स पमाणु ॥५॥ तं पायडु जिणवरवयणु गुरुउवएसइ होइ । अंधारइविणु दीवडइ अहवकि पिछइकोइ ॥ ६ ॥ संजमसील सऊचतउ जसुसूरिहि गुरुसोइ । दाहछेय कसघाय स्मु उत्तमु कंचणु होइ ॥७॥ मग्गइगुरुउवएसियह णरसिव पणिजति । तंविणु वग्घह वणयरह चोरहपिडि विपडंति ॥८॥