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________________ पर जैनधर्मके सम्बन्धमे एक पुस्तक लिखी जो अत्यन्त लोकप्रिय हुई। इसका अगरेजी अनुवाद सन् 1930ई० मे लन्दनसे 'द इण्डियन सेक्ट प्रॉव द जेन्स' नाम से प्रकाशित हमा। इस पुस्तकमे डॉ० बूलरने स्पष्ट रूपसे निरूपित किया कि जैनधर्म भारतवर्षके बाहर अन्य देशो में भी गया था। इस धर्मका उद्देश्य सभी प्राणियोको मूक्ति प्रदान करना है। जैन विद्याके महत्त्वपूर्ण अनुसन्धाताके रूपमे उल्लेखनीय विद्वान वेवर हैं। बम्बईके शिक्षा-विभागसे अनुमति प्राप्त कर डॉ० वूलरने जिन पांच सौ ग्रन्योको बलिन पुस्तकालयमे भेजा था, उनका अध्ययन व अनुशीलन कर वेवरने कई वर्षों तक परिश्रम कर भारतीय साहित्य (Indischen Studien) के रूपमे महान् ग्रन्थ 1882 ई० मे प्रस्तुत किया। यह ग्रन्थ सत्रह जिल्दोमे निबद्ध है। यद्यपि 'कल्पसूत्र'का अगरेजी अनुवाद 1848 ई० मे स्टीवेन्सन द्वारा प्रकाशित हो चुका था, किन्तु जैन प्रागम ग्रन्थोकी भाषा तथा साहित्यकी पोर तव तक विदेशी विद्वानोका विशेष रूपसे झुकाव नही हुना था। वेबरने इस साहित्यका विशेष महत्त्व प्रतिपादित कर 1858 ई० मे धनेश्वरसूरि कृत 'शत्रुज्जय माहात्म्य' का सम्पादन कर विस्तृत भूमिका सहित प्रथम बार लिपजिग (जर्मनी) से प्रकाशित कराया। श्वेताम्बर आगम ग्रन्थ 'भगवतीसूत्र' जो शोध-कार्य वेवरने किया, वह चिरस्मरणीय माना जाता है। यह ग्रन्थ बलिनकी विसेन्चाफेन (Wissenchaften) अकादमीसे 1866-67 ई० मे मुद्रित हआ था। वेबरने जैनोके घामिक साहित्यके विषयमे विस्तारसे लिखा था, जिसका अगरेजी अनुवाद-स्मिथ ने प्रकाशित किया था। विण्डिश ने अपने विश्वकोश (Encyclopedia of Indo-Aryan Research) मे तत्सम्बन्धी विस्तृत विवरण दिया है। इस प्रकार जैन विद्यामोके अध्ययनका सूत्रपात करनेवाला तथा शोध व अनुसन्धानको दिशाम्रोको निर्दिष्ट करनेवाला विश्वका सर्वप्रथम अध्ययन केन्द्र जर्मनमे विशेष रूपसे वलिन रहा है। होएफर, लास्सन, स्पीगल, फेडरिक हेग, रिचर्ड पिशेल, बेवर, ई० ल्युमन, डॉ. हर्मन जेकोबी, डब्ल्यु.बिटमन, वाल्टर शूबिंग, लुडविग ऑल्सडोर्फ, नार्मन ब्राउन, क्लास ब्रहन, गुस्तेव रॉथ और डब्ल्यु० बी० बोल्ले इत्यादि जमन विद्वान हैं। प्राच्यविद्याप्रोकी भांति जैनविद्यामो का भी दूसरा महत्त्वपूर्ण अध्ययन केन्द्र फान्स था। फासीसी विद्वानोमे सर्वप्रथम उल्लेखनीय हैं-ग्युरिनाट । उनका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'एसे डि बिब्लियाग्राफि जैन' पेरिससे 1906 मे प्रकाशित हा। इसमे विभिन्न जैन विषयो से सम्बन्धित 852 प्रकाशनोके सन्दर्भ निहित हैं। 'जनोका धर्म' (Religion Jains) पुस्तक उनकी पुस्तकोमे सर्वाधिक चचित रही। यथार्थमे फासीसी विद्वान् विशेषकर ऐतिहासिक तथा पुरातात्त्विक विषयोपर शोध व अनुसन्धान कार्य करते रहे। उन्होने इस दिशामे जो महत्त्वपूर्ण कार्य किए, वे आज भी उल्लेखनीय हैं। ग्युरिनाटने जैन अभिलेखो के ऐतिहासिक महत्त्व पर विशेष रूपसे प्रकाश डाला है। उन्होने जैन ग्रन्थ-सूची-निर्माणके साथ ही उनपर टिप्पण तथा सग्रहोका भी विवरण प्रस्तुत किया था। वास्तवमे साहित्यिक तथा ऐतिहासिक अनुसन्धानमे ग्रन्थ-सूचियो का विशेष महत्त्व है । यद्यपि 1897 ई० मे जर्मन विद्वान् अर्नेस्ट ल्युमनने 'ए लिस्ट ऑफ द मैन्यस्क्रिप्ट इन द लायब्ररी एट स्ट्रासबर्ग', वियेना पोरियन्टल जर्नल, जिल्द 11, पृ० 279 मे दौ सौ हस्तलिखित दिगम्बर जैन ग्रन्थोका परिचय दिया था, किन्तु ग्युरिनाटके पश्चात इस दिशा मे क्लाट (Klatt) ने महान् कार्य किया था। उन्होने जैन ग्रन्थोकी लगभग 1100-1200 पृष्ठोमे मुद्रित होने योग्य अनुक्रमणिका 72
SR No.011085
Book TitlePerspectives in Jaina Philosophy and Culture
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatish Jain, Kamalchand Sogani
PublisherAhimsa International
Publication Year1985
Total Pages269
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size12 MB
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