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जैन दर्शन और विश्वशान्ति
प्राचार्य पिजय इन्द्रदिन्न सूरि
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f eri पोरगमीभावा पाती है, जिससे सम्प्रदाय, शिपम पारिन
ना, पग मायना का बोध होता है। यही सून विश्वकारrtutमा 'मांगपटम्बमम'की पापागना।
ग रम नपEL मामय है। जनदर्शन का दूसरा नाम अनेकान्तinf i
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गाय मे प्रनेम पक्ष है-ममग्र दृष्टिकोणो समग्य यो परम
र गा यदी पकान्त दर्शन की सूची है। इस विश्व मे पना मा-मागर, प्रनय धम: मम्प्रदाय और जानिया, मयके प्रति मदभाय रखना अनेकान्त गाया निष्टय । पान गयामा दूर कर शाश्वत गाय को उजागर करता है। यदि
पोग एमागवार (यादा वोटफर अनेकानवाद प्रपनायें तो विश्वशान्ति निश्चित है।
बादशा का परिग्रह-मिदान्त-पन-गम्पत्ति के प्रति प्रासक्ति (मू ) नही रखना है। मगुप्प पपने मोनिगमगाया गटाने म दिन-रात एक कर रहा है, छल-कपट करता है। दूसरो को दुम पहपाता। यदि परिग्रह-गिद्यान्नमा प्रपना तो वह धन-सम्पत्ति को नीति-न्याय से अजित फग्गा, जितनी प्रायश्यपता होगी, उतनी ही मामग्री सचित करेगा, शेष सम्पत्ति को दानादि परोपकार में व्यय परेगा। पा-मम्मति ममाज की-सका स्वामित्व केवल धन-स्वामी का ही
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