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________________ जबलगि धरतरी तबलग भरथरी, जाइगी धरतरी न गत्वा भरथरी बिरछो छत्री त्रिण सज्या । बाव ढोलंत चमालिचा। आंगणे ग्रेहं दीपगचन्द । मो मन राजा निश्चलं ॥४५॥ मोरा नांचूत कोकिला गावत । भूरा बजावत रुद्र बेणी। चहूं दिसि तरूनी पवन झकोलत । यू भरथरी ग्यानं लीलं ॥४६ । सिला सिंघासन बाकल बसत्र । गगन छत्र सिर सोहै । चहूं दिसा तरूनी पवन झकोलत ग्यान रतन मन मोहे ॥४७॥ देस भवतां सदा बैरागी । सासत्र वैरागी पंडिता । बाल कन्यां चिधवै बैरागी। यूं ग्यांन बैरागी राजा भरथरी ॥४८। ग्यांनी सो जो गहर गम्भीरं । भरया कुम्भजल निश्चल नीरं । भनत भरथरी सत सरूप । तत विचारै तौ रेष न रूप ॥४९॥ ॥ इति श्री भरथरी जी की सबदी सम्पूर्ण ।
SR No.011032
Book TitleSiddha Siddhanta Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyani Mallik
PublisherPoona Oriental Book House Poona
Publication Year1954
Total Pages166
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size10 MB
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