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________________ रहिबा तौ निह सबद की छाया सेयबा तौ निरञ्जन निराकारं ॥ २२ ॥ कुलस्य हीनी नगनौपबाला । मृगनैनरूपी दृष्टो बिकराला । पदमो झलकत वा कस्य वेणी।कुतौ या गत्याहेलज्या विठ्ठणी॥२३॥ न गनसि काष्टं न गनसिरिष । न गनसि जीव जलचरा । अजहूं काय सिहोनरा । नही प्रसिद्ध जोगेश्वरा ॥ २४ ॥ जोगी चिन्ता विकलपो मम मता समाया । कथं जोग जुग तातें जोगो न पाया ॥ २५ ॥ नहीं जोगु जोगी सरबस भोगी। गुर ग्यांनी हीणं फिरो मुठजोगी । धनिस्य पुत्री कुलवन्ती नारी । धनस्य तु पतिव्रता ॥ २६ ॥ धनस्य देसस्य देवी अहूँ उपदेस मूष जोगी। तिण सज्या बनोबासी । ऊपर अम्बर छाया ॥ २७ ॥ भरथरी मन निश्चलं । घोरी घोरिबरखै हो इन्द्र के राया। जस्य माता तस्य राता । जस्य पीवंता तस्य मृदंता ॥२८॥ है है रे लोका दुराचारी । वैरागी है किन जावते ॥ २९ ॥ जस्य माया तस्य जाया । तस्य क्यू रे विषैमुचन्तेकाया । हा हा रे लोका दुराचारी । निज तत तजि लोहीचित लाया ॥३०॥ काम कलाली चित चढौ । सुरै विष सज्या मनमथ मांस बीरज ब्रह्महत्या । है है रे लोका दुराचारी । कहाँ रही सुच्या ॥३१॥ असत्री जोनी दीयंत विन्द । कोटि पूजा बिनसते । बरत मंजन तप पंडत ज्ञानहीन तपोनास्ति ब्रह्महत्या पदे पदें ॥३२॥ गोरख बोले सिरपरी । दुबटा है है पंथ । ऐक दस कू बाघनी । ऐक दिसां कू नाथ ॥३३॥
SR No.011032
Book TitleSiddha Siddhanta Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyani Mallik
PublisherPoona Oriental Book House Poona
Publication Year1954
Total Pages166
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size10 MB
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