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________________ ७३ इह मार्ग मै देवता कोन है यह आशंका वारनै कहै है । अद्वैतो परि म्महानन्द देवता । अद्वैत ऊपर भयो तब द्वैत ऊपर तो स्वतः भयो । इह प्रकार अहं कर्ता सिद्ध तूं जान छह करता अपनी इच्छा शक्ति प्रगट करी । पीछे ज्ञान शक्ति प्रगट करी । पीछे क्रिया शक्ति प्रगट करी । ताकरि पीछे पिण्ड ब्रह्माण्ड प्रगट भए तिनमें अव्यक्त निर्गुन स्वरूप सों व्यापक भयो। व्यक्त आनंद विग्रह स्वरूप सों विहार करत भयौ पीछे ज्यौही में एक स्वरूप सों नव स्वरूप होतु भयौ-तैं सत्यनाथ, अनन्तर सन्तोषनाथ विचित्र विश्व के गुन तिन सों असंग रहत भयौ, यात संतोषनाथ भयो।आगे कूर्मनाथ आकाश रूप श्री आदिनाथ । कूर्म शब्द है पाताल तरै अधोभूमि ताको नाम कूर्मनाथ । बीच के सर्वनाथ पृथ्वीमंडल के नाथ औरप्रकार सप्तनाथ भए । अनन्तर मत्स्येन्द्रनाथ के पुनह पुत्र श्री-जगत की उत्पत्ति के हेत लाये माया को लावण्य तांसों असंग जोगधर्म - द्रष्टा रमण किया है आत्मरूप सों सर्व जीवन मैं । तत् शिष्य गोरखनाथ। 'गो' कहिये वाक्शब्द ब्रह्म ताकी 'र' कहियै रक्षा करे, 'क्ष' कहियै क्षय करि रहित अक्षय ब्रह्म ऐसे श्रीगोरक्षनाथ चतुर्थरूप भयो और प्रकार नव स्वरूप भयो तामे एक निरन्तरनाथ कुं किह मार्ग करि पायौ जातु । ताको कारन कहतु हैं । दोय मार्ग विश्वमै प्रगट कियो है कुल अरु अकुल । कुल मार्ग शक्ति मार्गः, अकुल मार्ग अखण्डनाथ चैतन्य मार्ग तन्त्र अंस जोग तिनमै किंचित प्रपञ्च की । एवं ॥ या रीत मै द्वैताद्वैत रहित नाथ स्वरूप तै व्यवहार के हेतु अद्वैत निर्गुणनाथ भयौ अद्वैत ते द्वैत रूप आनन्द विग्रहात्म नाथ भयौ तामै ही मो एक तें मैं विशेष व्यवहार के हेतु नव स्वरूप भयौ तिन नव स्वरूप को निरूपण । श्री कहियै अखण्ड शोभा संजुक्त गुरु कहिये सर्वोपदेष्टा आदि कहिये इन वक्ष्यमाण नव स्वरूप में प्रथम नाथ 'ना' करि नाद ब्रह्म को बोध करावे, 'थ' करि थापन किए है त्रय जगत् जिन ऐसो श्री आदिनाथ स्वरूप । अनन्तर मत्स्येन्द्र नाथ । ता पीछे तत् पुत्र तत्
SR No.011032
Book TitleSiddha Siddhanta Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyani Mallik
PublisherPoona Oriental Book House Poona
Publication Year1954
Total Pages166
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size10 MB
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