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(१६) ष्ठिर गृहस्थी को और विशेषकर तपस्वीको रात को पानी भी नहीं पीना चाहिये। ___ मृतेस्वजनमात्रेपि सूतकंजायतेकिल । अस्तंग तेदिवानाथे भोजनंक्रियतेकथं । रक्तामवंतितोया नि अन्नानिपिशितानिच । रात्रीभोजनसत्तस्यग्रा सेनमांसभक्षणं ॥ नैबाहूतीनचस्नानं नांददेव तार्चनं । दानंचविहितंरात्रौ भोजनंतुविशेषतः॥ उदं बरंभवेत्मांसं मांसंतोयमबस्त्रक। चर्मबारोभवेत्मांसे मांसेचनिशिभोजनं ॥ उलककाकंमार्जारं गृध्रशंबर शूकराः । अहिवृश्चिकगोधाद्या जायन्तनिशिभोज नात् ॥
अर्थ--जैसे स्वजन के मरण मात्र से सूतक होता है ऐसाही सूर्य अस्त होने के पीछे रात्रि को सूतक होता है इस कारण रात्रिको कैसे भोजन करना उचित है । रात्रि को जल रुधिर समान होजाता है और अन्न मांस के भाव को प्राप्त होता है इस कारण रात्रि विषै भोजन लंपटी को एक गासभी मांसभक्षण समान होजाताहै। रात्रिभोजन करनेवाले पुरुषको आहुति देना स्नान करना श्राद्ध करना देवार्चन करना दान देना व्यर्थ है । उदंवर फल अर्थात् बडका फल पीपलका फल पीलूका फल गूलरका फल प्रा. दिक मांस समान ही हैं।
और रात्रि को भोजन करनाभी मांस है। रात्रि को भो.