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(१४) अर्थ--हमलोग पवित्र पापसे बचाने बाले नग्न देवता ओं को प्रसन्न करते हैं जो नग्न रहते हैं और बलवान हैं ।
ऋग्वेद । नग्नंसुधीरंदिगवाससंब्रह्मग.सनातनंउपैमिवी रंपुरुषमहतमादित्यवर्णतमसःपुरस्तात्स्वाहा ॥
अर्थ-नग्न धीर वीर दिगम्बर ब्रह्मरूप सनातन अर्हत आदित्य वर्ण पुरुष की सरण प्राप्त होता हूँ ॥
महाभारत ग्रन्थ । आरोहस्वरथंपार्थगांडीबंचकरेकुरूनिर्जितामदिनी मन्येनिग्रंथायदिसन्मुखे ॥
अर्थ-हे युधिष्ठर रथ में सवार हो और गांडीव धनुष हाथ मैंले । मैं मानता हूं कि जिसके सन्मुख नग्न मुनि आये उसने पृथ्वी जीतली ।
मृगेंद्रपुराण । श्रवणोनरगोराजामयूरःकुंजरोवृषःप्रस्थानेचप्रवे शेवासर्वसिद्धिकरामता ॥ पद्मिनीराजहंसश्च नि थाश्चतपोधनाः यंदेशमुपाश्रयति तत्रदेशसुखंभवेत्। __ अर्थ--मुनीश्वर, गौ, राजा, मोर, हाथी, वैल, यह चलने के समय तथा प्रवेश के समय सामने आवे तो शुभ हैं और कमलनी, राजहंस, नग्नमुनि जिस देशमैं हों उस देश में सुख हो।
रात्री को भोजन न करने और विनाछाने पानी न पीने आदिक के विषय में अन्य मतके ग्रंथों में ऐसा लिखा है।
सला ।