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(१०) र्ताऽर्हन्पुरुषोहरिश्च सबिताबुधःशिवस्त्वंगुरुः॥ ___ अर्थ-वहां दर्शन में मुख्य शक्ति आदि कारणतू है
और ब्रह्म भी तू है मायाभी तू है कर्ताभी तू है और अहंन् भीतहै और पुरुष हरिसूर्य बुध और महादेव भी तूही है ।
भावार्थ--यहां अर्हन्त तू है ऐसा कहकर भगवान की स्तुति करी।
हनुमन्नाटक । यशैवाः समुपासतेशिवइतिब्रह्मेतिवेदान्तिनो। वौद्धावुद्दइति प्रमाणपटवःकर्नेतिनैयायिकाः ॥ अर्ह नित्यथजैनशासनरताः कर्मतिमीमांसकाः। सोयंवो विदधातुवांछितफलं त्रैलोक्यनाथःप्रभुः ॥
अर्थ-जिसको शैव लोग महादेव कहकर उपासना करते हैं और जिसको वेदान्ति लोग ब्रह्म कहकर और बौ छ लोग बुद्ध देव कहकर और युक्ति शास्त्रमें चतुर नैयायि क लोग जिसे कर्ता कहकर और जैनमत वाले जिसको अ हन्त कहकर मानते हैं और मीमांसक जिस्को कर्म रूप ब र्णन करतेहैं वह तीनलोक का खामी तुम्हारे बांछित फ लको देवै ॥
भवानीसहस्रनाम ग्रंथ । कुंडासनाजगद्धात्रीबुद्धमाताजिनेश्वरी । जिनमा ताजिनेंद्राचसारदाहंसवाहिनी॥
अर्थ--भवानीके नामऐसे वर्णन कियेहैं ॥ कुंडासना,