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|| श्रीगणराय नमः ॥
धर्मप्रबोधनी.
श्री ऋषभनाथ आदिक तीर्थकर जिनकी भक्ति जैनी लोग करते हैं और मूर्ती बनाकर दर्शन करते हैं उनका वर्णन हिन्दू भाईयों के ग्रन्थों में ऐसा लिखा है |
श्री भागवत्ग्रन्थ |
श्रेयस्यतद्रच
नित्यानुभूतनिजलाभनिवृत्ततृष्णा नयाचिरसुप्तबुद्धेः । लोकस्य योकरुणयोभयमात्मलो क माख्यान्नमो भगवतेऋषभायतस्मै ॥
अर्थ-- उस ऋषभ देवको हमारा नमस्कार हो सदा प्राप्त होनेवाले आत्मलाभ से जिसकी तृश्ना दूर होगई है और जिन्होंने कल्यान के मारग में झूठी रचना करके सोते हुए जगत की दया करके दोनों लोकके अर्थ उपदेश किया है ॥
श्री ब्रह्माण्डपुराण ग्रन्थ ।
नाभिस्तु जनयेत्पुत्रं मरुदेव्यांमनोहरम् । ऋषभं क्षत्रियश्रेष्टं सर्वक्षत्रस्यपूर्वकं ॥ ऋषभात्भारतोयज्ञे बीरपुत्रशताग्रजः । अभिषिंच्यभरतराज्ये महाप्राश ज्यमाश्रितः ।
अर्थ -- नाभिराजा के यहां मरुदेवी से ऋषभ उत्पन्न हुए जिनका बडा सुंदर रूप है जो क्षत्रियों में श्रेष्ट और सब क्षत्रियोंके आदिहैं । और ऋषभके पुत्र भरतपैदा हुवाजोवीर