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श्रीवतरागाय नमः
लीजिये ! पढिये ! अपने मित्रोंको भी सुनाइये. डेढ रुपयेमें ६७ रत्न.
पाठक महाशय ! पहिले हमसे ६७ रत्नोंके नाम सुनिये क्यों कि ये रत्न बहुत प्राचीन, प्राणीमात्रको अतिशय हितकारी हैं. इन ६७ रत्नोंकी माला जो महाशय कंठमें धारण करेंगे वे इस लोकमें सुख यशको प्राप्त होकर परभवमें अमित सुखके भागी होंगे.
रत्नोंके नाम.
१ पुण्यपचीसिका कविनमय जिसमें स्तुति व उपदेश है, २ शतअष्टोत्तरी जिसमें उत्तमोत्तम सर्वैया छप्पयछंद और कवित्तोंद्वारा एकसौ तरहके उपदेश दिये गये हैं, ३ द्रव्यसंग्रह शुद्धतापूर्वक मूल कवित्तबंध, जिसमें पद्रव्य, नवपदार्थ, पञ्चास्तिकाय रत्नत्रय आदिका वर्णन है, ४ चेतनकर्मचरित्र जिसमें जीव और कर्मोंका युद्ध हुवा है, गुणस्थानोंकी चर्चा व जीव कर्मका वर्णन बहुत ही उत्तम रीति से अनेक प्रकार के छंदोंमें है, ५ अक्षरबत्तीसी इसमें ३२ अक्षरोंपर बसीस तरहके उपदेश हैं, ६ परमात्मशतक इसका एक २ दोहा लाख २ रुपयोंका हैं, अनेक दोहे ऐने हैं कि जिनके अर्थ लगाने में बडे २ पण्डित सकुचाते हैं. हमने जहांतक बना अर्थ खोल दिये हैं, ७ पूजाष्टक कवित्तों में अष्टप्रकारी पूजा), ८ चित्रबंध कविता चित्रसहित ९ प्रश्नोत्तर दोहे इनके अर्थ लगाने में भी पण्डितोंकी बुद्धि गोते खाने लगती है, १० वर्तमान चोवीसी स्तोत्र (कवित्तबंध), ११ वर्तमान वीसी जिनस्तुति, १२ परमात्माको जयमाल, १३ तीर्थंकर जयमाल १४ गुरु जयमाल, १५ पार्श्वनाथके छन्द, १६ शिक्षाबन्ध छन्द, १७ परमार्थपदपंक्ति - अनेक प्रकार के पद, १८ गुरुशिष्य प्रश्नोत्तरी, १९ मिथ्यात्वविध्वंशनचतुर्दशी, २० जिनगुणमाला, २१ परमात्मा कड़खा, २२ पञ्चपरमेष्टीका वन्दन, २३ गुणमञ्जरी, २४ लोकक्षेत्रमरजाद, २५ मधुबिन्दुकी चौपाई - जिसमें संसारका सब स्वरूप दिखाकर मधुबिन्दुके दृष्टांत मे वैराग्योपदेश दिया गया है, २६ सिद्धचतुर्दशी, २७ निर्वाणकाण्ड भाषा, २८ एकादश गुणस्थानपंथवर्णन, २९ कालाष्टक, ३० उपदेशपचीसी, ३१ नन्दीश्वरजयमाल, ३२ शिवपन्थपचीसी, ३३ बारह भावना, ३४ कर्मबन्धके दश भेद, ३५ सप्तभंगी वाणी, ३६ सुबुद्धिचौवीसी, ३७ अकृत्रिमचैत्यालयकी जयमाला, ३८ पंधरहपात्रों का भेदवर्णन, ३९ ब्रह्मा ब्रह्म निर्णय, ४० अनित्यपचीसी, ४१ अष्टकर्मका चौपई, ४२ सुपंथकुपंथपचीसी, ४३ मोहभ्रमाष्टक जिसमें ब्रह्माविष्णुमहेशादि देवोंकी लीला है, ४४ आश्चर्यचतुर्दशी, ४५ रागादिनिर्णयाक, ४६ पुण्यपापजगमूल पचीसी, ४७ बाईस परीसहोंके कवित्त, ४८ मुनिआहार विधि-छियालीसदोपवर्णन, ४९ जिनधर्म पचीसी, ५० अनादिबत्तीसी, ५१ समुद्घातस्वरूप, ५२ मूढाष्टक, ५३ सम्यकपचीसी, ५४ वैराग्यपचीसी, ५५ परमात्माछत्तीसी. ५६ नाटकपचीसी, ५७ उपादान निमित्तसंवाद, ५८ तीर्थंकरजयमाल, ५९ पंचेन्द्रियोंका परस्परसंवाद, ६० ईश्वरनिर्णयपचीसी, ६१ कर्ताअकर्तापचीसी, ६२ दृष्टांत पचीसी, ६३ मनबत्तीसी, ६४ स्वप्रवत्तीसी, ६५ शुकबत्तीसी, ६६ ज्योतिषके कवित्त, ६७ फुटकर कवित्त, पद और ग्रन्थकर्ता नाम- इसप्रकार ६७ प्रन्थरूपी महामूल्य रत्न हैं.
कहिये ! पाठक महाशय कैसे २ उत्तमोत्तम रत्न हैं. इन ही रत्नोंकी भैया भगवतीदासजीने विद्वानोंके कंठमें धारण करने योग्य एक मोहनमाला बनाई ( गुंथी ) है. जिसका नाम उन्होंने ब्रह्मविलास रक्खा है. अनेक महाशय इसे भगोतीविलास भी कहते हैं. यह ग्रन्थ दोहे, चौपाई, पद्धरिछन्द छप्पय, सवैया, कवित्त आदि में ऐसा उत्तम है कि, इसके प्रत्येक अक्षरसे जिनमतका रहस्य व उत्तमोत्तम उपदेश प्रगट होते हैं. इसको हमने जैनकवि भाई नाथूराम प्रेमीसे शुधवाकर जहांतक हमसे बना शुद्धता पूर्वक छपाकर तैयार किया है. यह ग्रन्थ चिकने कागजोंपर सुन्दर टाइपमें चारों तरफ बेल लगाकर बहुत ही सुन्दर छपवाया गया है. पृष्ठसंख्या ३०६ है. मूल्य रेशमीन कपड़े और क्याट्रिशकी जिल्द सहित १ || ) रु० रक्खा है. वी. पी. में मंगानेसे डांक्य =) जुदा पड़ेगा. जो महाशय एकसाथ ५ प्रति लेंगे उनको १ प्रति विनामूल्य मिलेगी.