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जैनधर्मपर व्याख्यान.
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अभीतक जैनियोंसम्बन्धी पाश्चिमात्योंकी वन रहेगा. नैनपरिषदके परिचालकोंने यह
हमारी विचित्र श्रद्धा, उन लो- तत्व ध्यानमें रखके समाजभरके लोगोंको उपसंहार. गोंका इतिहास, जैनधर्मक मुल्य स्वकर्तव्यसम्बन्धमें जागृति उत्पन्न करनेका प्रा
२ तत्व, सम्प्रदाय, नीति व रंभ किया है. जैनियोंकी एक समय हिंदुआचार, जैनतत्वज्ञान, बौद्धधर्मसे समता व भिन्नता, और जैनधर्मपुरातनत्वविषयक प्र
स्थानमें बहुत उन्नतावस्था थी. धर्म, नीति, माण आदि बातोसम्बन्धी जो विवेचन किया। कारपरता, पाङ्मय, समानान्नति, आदि उससे इस धर्ममें सुज्ञोंको आदरणीय ऊँचने बाताम उनका समाज इतरजनोंसे बहुत आगें योग्य अनेक बातें हैं ऐसा दीख पड़ेगा. सा- था. प्रत्येक बातोंमें ब्राह्मण व बौद्धोंकी बरामान्य लोगोंको भी जैनियोंसे अधिक शिक्षा बरीके महत्पद उन्होंने प्राप्त किये थे. संसारमें लेना योग्य है. जैनी लोगोंका भाविकपन श्रद्धा क्या हो रहा है इस ओर हमारे जैनबंध लक्ष व औदार्य प्रशंसनीय है. उनमें धर्मशिक्षणकी देकर चलेंगे तो वह महत्पद पुनः प्राप्तकर शालये खोलनेका प्रयत्न चल रहा है, और लेनमें उन्हें अधिक श्रम नहीं पडेगा. इसी इस काममें वे लोग केवल मुँहसे बडबड करने । सद्धेतुसे प्रेरित होकर जैन व अमेरिकन लोगोंसे वाले नहीं हैं. धर्मके लिये जितना चाहिये संघटन कर आनेके लिये बम्बईके प्रसिद्ध उतना द्रव्य खर्च करनेको वे तयार हैं, उनकी जैनगृहस्थ परलोकवासी मि० वीरचन्द गांधी श्रद्धा दृढ है. अतः उन्हें व्यवहारमें लाभ अमेरिकाको गये थे व वहां उन्होंने जैनधर्मअधिक होता है इसमें कोई नई बात नहीं है. विषयक परिचय करानेका क्रम भी स्थित किया आहिंसातत्त्व उन्होंने उपहासाम्पद होने योग्य था. अमेरिकामें 'गांधी फिलॉसफिकल सोसालम्बी मर्यादा तक पहुंचा दिया है, यह बरा यटी' अर्थात् जैनतत्त्वज्ञानका अध्ययन व प्रसार है; तथापि उससे उनमें आम्था कितनी है करनेके लिये जो समाज स्थापित हुई वह सो स्पष्ट जानी जाती है, उनकी आस्था, श्रद्धा, उन्हींके परिश्रमका फल है. दुर्दैवसे मि. वीर
औदार्य और धर्मजागतिको किंचित् नया अकाव | चन्दकी अकाल मृत्यु होनसे उक्त आरंभ किया मिलना इष्ट है. संसारमें सुधारणाका जो जंगी हुआ देशकार्य अपूर्ण रह गया है. परंतु उसे जलप्रवाह चल रहा है, उसकी विरुद्ध दिशाको | पूर्ण करनेको कोई सुशिक्षित जैन तयार होवे तो जानेमें बड़ीमारी हानि है; और उसकी अनु- उसकी कीर्ति चिरायु हो, इसमें सन्देह नहीं है. कूल दिशामें जाना हितकर होगा, यह तत्व हिंदुस्थानके लोगोंको अपनी एकदेशीयता छोड़ध्यानमें रखकर हमारे जैनबंधु समाज व धर्म कर अपनी दृष्टिका प्रदेश अधिक विस्तृत कविषयोंको अपनी बुद्धिसे समय २ उन्नति देते रना चाहिये; तबही उनका कल्याण होगा. जावेंगे तो गतिका मार्ग आजकलके सदृश कुंठित यह जैनियोंके इतिहाससे सीखने योग्य है. १ ये ठीक नहीं है. देखो टिपणी पृष्ठ ९ की. दूसरे विषयकी पूर्ण खोजकर स्वतःकी उ