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जैनधर्मपर व्याख्यान..
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जैन लोग मूलसे जातिभेदके न माननेवाले जैनधर्मके विषयमें अभीतक जो कहा गया . हैं ( १ ) किसी भी धर्म व जातिके
है उससे उसकी बौद्धधजातिभेद.
१६. मनुष्यका जैनधर्ममें आना वन सक्ता बौद्धधर्मसे साम्य. मसे बहुत कुछ समानता है. तथापि आज दो अढाई हजार वर्षसे हिन्दू |
जान पड़ती है और इतलोगोंके साथ संसर्ग रहनेसे हमारा जाति भेद नी ही बातसे जैनधर्म बौद्धधर्मसे निकला, अथवा जैनियोंने ग्रहणकर लिया है (२) जैनशा- पहिला दूसरेकी नकल है ऐसा तर्क कई स्त्रोम जाति भेदका पालन करो, यह नहीं एक पंडितोंने निकाला है. परंतु वह भूलका है, कहा है, परंतु लोक रूढिसे वह पाला जाता गौतमबुद्धके पहिले तेवीस बुद्ध हो गये व गौहै, 'शास्त्र बलीयसी' यह वचन जि-तम शाक्य मुनि यह चौवीसवां. इसी प्रकार तना आधुनिक हिन्दुओंको, उतना ही आधुनिक वर्द्धमान व महावीर इनके भी पहिले तेवीस जैनियोंको भी लागू होता है.
तीर्थकर ( जिन ) हो गये व महावीर चौ
--- | वीसवें थे. बुद्ध व महावीर दोनों ही काश्यप (१) मनुष्यजातिरेकैव जातिनामोदयोद्भवा। गोत्री क्षत्रिय थे दोनों ही धर्मोमें श्रुतिको (वेदको) वृत्तिभेदाद्वितद्धदाश्चातुर्विध्यामिश्नुते ॥ ४॥ ब्राह्मणा व्रतसंस्कागक्षत्रियाःशस्त्रधारणात। प्रमाण नही मानते व इश्वरको सृष्टिका कतत्व व वाणिजोऽर्थार्जनाम्यायाच्दान्यग्वृत्तिसंस्थ. चालकत्व नहीं सौंपते; दोनोंहीमें नातिभेद
यात् ॥ ४६॥ नहीं. दोनोंमें पुरुषोंके बराबर स्त्रियोंका मान अर्थ-जाति नाम कर्मके उदयमे उत्पन्न हुई मोरी - 2
म है; बौद्धांके सदृश जैनियोंमें भी श्रावक और नुष्य जाते एक ही है, परंतु उपजीविकांक ( आ जीविकाके ) भेदोंसे उसके ४ भेद हैं. व्रत देने व संस्कार
व प्रधान करनके काम करनेवाले ब्राह्मण, शस्त्रधारण करनेवाले हैं, बौद्धधर्ममें जैसे बुद्ध, धर्म और संघ इनका क्षत्रिय, न्यायमागसे द्रव्योपार्जन करनेवाले वैश्य, और तीनों वोंकी सेवा करनेवाले सूद्र है. इस प्रकार चार जाति महापुराणमें कही है।
न व सम्यक्चारित्र यह रत्नत्रयी हैं। दोनों जातिगोत्रादिकर्माणि शक्तध्यानस्य हेतवः। धर्मोको रानाश्रय मिला, और आश्चर्य यह है कि, येषु ते स्युस्त्रयो वर्णाः शेषाः सूद्राः प्रकीर्तिताः वह मौर वंशके राजाओंसे ही मिला. बौद्धधर्मका
अर्थ-शुक ध्यानका कारण उत्तम जाति ही है. | पुरस्कर्ता राजा अशोक वैसे ही जैनधर्मका पुरजनम गोत्र इत्यादि उत्तम कार्य जिममे है ऐसी ग्रा
स्कर्ता संपदि अर्थात् अशोकका नाती, अशोह्मण क्षत्रिय वैश्य तीन ही जाति हैं. शेषके वर्णको सूद कहेत हैं क्योंकि उनमें उच्चगोत्रत्व उच्चजाति व शुद्धा चरण नहीं होते.
कई एकोका मत है. स्वनः अशोक रानातक (२) जैनियोंने जातिभेद हिंदुवाँसे लिया है ऐसा मलमें जैनधर्मी होकर पश्चात् बौद्धधर्मी हुआ ऐसा नहीं कहना चाहिये किन्तु जनोंके यहां आदिसे जातिभेद माना गया है. (देखो जिनसेनाचार्यकृत म भी मि. एडवडे थॉमस नामके विद्वान पंडितका हापुराण )
कहना है. बौद्धधर्मग्रन्थ पाली भाषामें है। वैसे