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नैनधर्मपर व्याख्यान.
भी महापाप है, ऐसा निषेध उस समय कठो- लोगोंका वंशन ठहराया है। दूसरे एक मिष्टर रताकें साथ पाले जानेसे जैनमन्दिरको भौतकी कोलियोर नामक साहिबने Scripture Mira
आडमें क्या है। इसको खोज करै कौन ? ऐसी | cles. नामक पुस्तकमें जैन शब्दकी जो व्युत्पस्थिति होनसे ही जैनधर्मके विषयमें झूठे गपोड़े त्ति की है वह बड़ी दिल्लगी की है, आप फरउड़ने लगे. कोई कहता है जैतधर्म नास्तिक है माते हैं 'जैन' शब्द रोमन 'जनस' शब्दसे. कोई कहता है बौद्धधर्मका अनुकरण है कि, जब बना है 'जेनस' यह रोमन लोगोंका एक देवता शंकराचार्यने बौद्धोंका पराभव किया तब बहुत से है, जैसे शिवके उपासक शैव, विष्णुके उपासक बौद्ध पुनः ब्राह्मणधर्ममें आ गये. परन्तु उससमय वैष्णव, इसी प्रकार नेनसके जैन । (धन्य।) जो थोडेबहुत बौद्धधर्मको ही पकड़े रहे उन्हींके एक मिशनरीकी कल्पनाने तो इससे भी अधिक वंशज यह जैन हैं. कोई कहता है कि, जैनधर्म कमाल किया है,आपका कहना है कि,"वायविलमें इस बौद्ध धर्मका शेषभाग नहीं किन्तु हिन्दू- (Genesis) अथवा 'सृष्टिकी उत्पत्ति' प्रकर. धर्मका ही एक पंथ है; व कोई कहते हैं कि, णके चौथे अध्यायमें 'केन' व 'अबेल' इन दो नग्नदेवको पूजनेवाले जैनी लोग यह मूलमें बंधुओंकी कया है; उनमेंसे देवकी शापसे पीआर्य ही नहीं हैं. किन्तु अनार्योंमसे कोई हैं. डित हुए 'केनकी जो संतति वही नैन हैं' अपने हिन्दुस्थानमें ही आज चौबीससौ वर्ष पूर्वसे इसमें प्रमाण क्या? यह कि, केनकी संतति पड़ोसमें रहनेवाले धर्मके विषयमें जब इतनी जिस प्रकार विशालशरीर और दीर्घायुषी थी. उसी अज्ञानता है तब हजारों कोससे परिचय पाने प्रकार जैन तीर्थकर भी भव्याकृति और दीर्घावाले व उससे पीछे मनोऽनुकूल अनुमान गढ़ने- युषी थे' यह सब जैनधर्मके अनुसंधान करनेसे वाले पाश्चिमात्योंकी अज्ञानतापर तो हंसना ही मालूम पड़ता है. पहाड़ वगैरहमें नो तीर्थकरोंकी
क्या है ? तथापि अपने प्राचीन जैन मूर्तियां पाई जाती हैं वे बहुतही पाश्चिमात्यांकी विचित्र
वत्र लोगोंकी अज्ञानताके विशाल आकृतिकी और पुरानी होती हैं. ग्वालियअज्ञानता.
" विषयमें जैसे ऊपर रके किलेमें जो प्राचीन जैनमूर्तियें मिली हैं वे कहा गया वैसे ही उनकी भी अज्ञानता हास्या- बहुतही ऊंची हैं. दक्षिणमें श्रीरंगपट्टणसे ४० सद होनेसे उनमेंके एक दो उदाहरणोंका मैलपर चिनरायपट्टण नामक ग्राम है. 'चिनरायनमूना दिखलाना योग्य है. लेफटेंट कर्नल विलि- पट्टण' यह नाम जिनरायपट्टण, शब्दका अपभ्रंश एम् फ्रांकलिनने जैन व बौद्ध धर्मके सम्बन्धमें होगा. ऐसा दिखता है. इस स्थान में जैन मंदिर है इस्वी सन् १८२७ में एक " Researches on the tenets and doctrines of the Jain | (१) चिनरायपट्टणमें जैन मंदिर न होकर वसंसे and Budhists Conjectured to be there आठ मीलपर श्रवण वेळगुळ ( जैनविद्री ) नामक
Brahming of Ancient India" अन्य स्थानपर हैं. उन सबका नकसा मद्रास प्रान्तके सरकारने लिखा है उसमें उन्होंने जैनियोंको ईजिपिशियन अपकर प्रसिद्धकर दिया है.