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ॐ
श्रीषीतरागाय नमः
नीरक्षीरविवेके हसाऽलस्यं त्वमेव तनुषे चेत् । विश्वस्मिन्नधुनान्यः कुलवतं पालयिष्यति कः ॥
रा. रा. वासुदेव गोविंद आपटे बी. ए. इंदोरनिवासीका
जैनधर्मपर व्याख्यान.
देवरीकलां जिला सागरनिवासी
नाथूराम (प्रेमी) दिगम्बरीय जैनद्वारा अनुवादित.
और
शेठ नाथारंगजी गांधी आकलूजनिवासीद्वारा
मुम्बयीके
" कर्नाटक " प्रेससे प्रकाशित.
प्रथमबार ]
[ २००० प्रति.