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वन्दे मातरम्।
वन्दे मातरम् ।
पानी की कुछ कमी नहीं है, हरियाली लहराती है। फल श्री फूल बहुत होते हैं, रम्य रात छवि छाती है ।। मलयानिल मृदु मृदु बहती है, शीतलता अधिकाती है। सुखदायिनि वरदायिनि तरी, मूर्ति मुझे अति भाती है ।
वन्दे मातरम् । तीस कोटि लोगों की कलकल, सुनी जहां पर जाती है। उसकी दुगुन खग-धारा की युति विकाश जह पाती है। तिस पर भी ' तू अबला " यह बान व्यथा उपजाती है। है तारिनि ! ह बहुवल-धारिनि ! रिपु तु काट गिराती है ।
वन्दे मातरम ।
नृढी धम्म, कर्म भी नही, तृही विद्यावानी है। तृही हृदय, प्रागण भी तृही, नही गुगा-गरण वानी है ।। बाहु-शक्ति तृही मग, तेरी भक्ति महा मन मानी है। प्रति घट, प्रति मन्दिर के भीतर तृही सदा समानी है ॥
वन्दे मातरम । हे दुर्ग ! दस भुजा तुह्मार्ग, दुर्गति-नाश निशानी है। हे कसले : हे अमल ! अचल ! तु सब सुख की खानी है ॥ नहीं एक भी भरतखण्ड में एमा पापी प्रानी है। कह न जो नित, “ यही हमारी महा-महिम महरानी है" ॥
वन्दे मातरम् ।
( सरस्वती )