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स्वदेशी आन्दोलन और वायकाट।
अंगरेज लोग इस बात को भलीभांति जानते हैं कि ' स्वदेशी' का परिणाम क्या होगा । यदि इस विषय के संबंध में किसीके मन में भ्रम या संशय है, तो वह हमारे ही देशभाइयों के मन में है । हमारे ही कुछ देशभाई, 'स्वदेशी' के यथार्थ भाव को न समझकर, हमको यह उपदेश देते हैं कि 'स्वदेशी ' को राजनैतिक विपयों से बिलकुल अलग रखना चाहिए; ' स्वदेशी' का संबंध कांग्रेस से न रहने देना चाहिए; स्वदेशी' का उद्देश केवल अपने देश के व्यापार और कारग्वानों की उन्नति करने का है; 'स्वदेशी' का 'बायकाट ' से कुछ भी संबंध न रहने देना चाहिए। अब 'हमारा यह प्रश्न है कि, क्या हम लोगों पर राज्य करनेवाले अंगरेज़ दुधमुहे बालक हैं, जो बायकाट', 'बहिष्कार-यांग', 'विदेशी वस्तु का त्याग' 'राजनैतिक' आदि शब्दों के बदले स्वदेशी', ' स्वदेशी वस्तु का व्यवहार' 'अपने व्यापार और कारग्वानों की उन्ननि' आदि शब्दों के प्रयोग ही से धोग्या ग्या जायेंगे ? क्या वे केवल शब्दों के उलट-पलट है। से यह समझ लेंग कि हमारा प्रयन अपने देश के हित के लिये नहीं, किंतु उन्हीं लोगों ( अंगरेजों) के हित के लिय है ? क्या व किसी एक प्रकार के शब्दों के उपयोग ही से प्रसन्न हो जायेंगे ? नहीं; कदापि नहीं । जो लोग इस उपाय से अंगरेजों की आंखों में धूल फेंकना चाहते हैं वे अपनी अज्ञानता और अपनी मूर्खता से स्वयं अपनी आंखों में धूल फेंककर अंध बनने का यत्न करते हैं। ऊपर लिखा गया है कि जो जो प्रयत्न ( चाहे वे राजनैतिक हो, चाहे औद्योगिक ) हमारे देश की यथार्थ उन्नति के लिये किये जायँगे वे सब, न्यूनाधिक प्रमाण से, अंगरेजों के स्वाथ-हित के विरुद्ध ही होंगे । आप उन प्रयत्नों का नाम कुछ भी राग्वियं-- आपका दिल चाहे तो उसे कांग्रेस कहिय, या स्वदेशी आन्दोलन कहिये, या बायकाट कहिये । इन सब प्रयनों का जो अन्तिम फल होगा-और जिस अन्तिम फल की अभिलाषा प्रत्येक देशभक्त के मन में अवश्य होनी चाहिए.-वह एक ही है। वह फल यही है, कि इस देश के गोरे अधिकारियों की राजसत्ता कुछ मर्यादित होकर इस देश के निवासियों को स्वराज्य का सुख प्राप्त होगा, और विलायत के गोरे व्यापारियों की धनलालसा कुछ कम होकर हमारे देश