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कांग्रेस और 'स्वदेशी'।
व्यापार न तो किसी दूसरे देश के लोगों के हाथ में जाने पावे और न हिन्दुस्थानियों ही के हाथ में रहे। वे लोग हिन्दुस्थान के व्यापार ही से धनी
और मानी हुए हैं। इस लिये वे इस सोने की चिड़िया को अपने हाथ से जाने देना नहीं चाहते । सारांश, इस देश पर जिन विदेशियों की गजमत्ता है उनमें से कुछ तो गोरे अफसर हैं और कुछ गोरे व्यापारी । यहां के गोरे अफसर यही चाहते हैं कि इस देश की सब राजसत्ता अपने ही हाथ में बनी रहे; और विलायत के गोरे व्यापारी यही चाहते हैं कि इस देश का सब व्यापार अपने ही हाथ में बना रहे । यदि हिन्दुस्थानियों में कुछ एकता और शक्ति रहती तो व उक्त दोनों प्रकार के लोगों की सत्ता को बहुत कुछ मर्यादित कर सकते; परंतु खेद की बात है कि इस देश के गोरे अफसर अपनी राजसत्ता का उपभोग, प्रजा की रोक-टोक के बिना, अनियंत्रित रूप से, कर रहे हैं; और विलायत के गोरे व्यापारी, इस पवित्र आर्यभूमि के कलेज का सम्पत्ति-रूपी खून, निर्दयता से पीते चले जा रहे हैं।
उक्त विवेचन से पाठकों का यह बात विदित हो जायगी कि इस देश की राजसत्ता किन लोगों के हाथ में है-इस देश के राजा कौन हैं। इस दश पर गोरे अफसरों की जो अनियंत्रित राजसत्ता चल रही है उसको मर्यादित करने का यत्न करने के लिये कांग्रेस का जन्म हुआ है । अर्थात कांग्रेस का प्रधान हेतु राजनैतिक विषयों की चर्चा करने और राजनैतिक हक प्राप्त करने का है। स्मरण रहे कि राजनैतिक आन्दोलन करने में कांग्रेस ने इस देश की औद्योगिक और आर्थिक दशा पर दुर्लक्ष नहीं किया। उसने इस देश की आर्थिक उन्नति के संबंध में भी अनेक उत्तमोत्तम प्रस्ताव किये हैं । चार पांच वर्ष से कांग्रेस के साथ साथ देशी कारीगरी और कला-कुशलता की एक प्रदर्शनी भी, हर साल, खोली जाती है । गत वर्ष की कांग्रेस के समय, काशी में, एक
औद्योगिक परिषद भी स्थापित हुआ है । सारांश, कांग्रेस ने औद्योगिक विषयों की ओर भी थोड़ा बहुत ध्यान दिया है । तथापि उसका प्रधान हेतु राजनैतिक ही कहा जायगा । उसका यही हेतु अत्यंत उचित है;