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कांग्रेस और 'स्वदेशी'।
करना है, जिन लोगों को अपने देश के व्यापार की उन्नति करना है, जिन लोगों को अपनी पवित्र आर्यमाता को निर्जीविता के कलङ्क से मुक्त करना है, उनके हृदय की दुर्बलता कदापि शोभा नहीं देती। यदि हम अपने हृदय की दुर्बलता को छोड़ दें और विदेशी वस्तु के त्याग की . प्रतिज्ञा के पालन में दृढ़ निश्चय से प्रयत्न करते रहें तो स्वदेश की उन्नति का कार्य हमारी शक्ति के बाहर नहीं है।
कांग्रेस और 'स्वदेशी।
कोई कोई यह कहते हैं कि स्वदेशी आन्दोलन के नायकों का हेतु
औद्योगिक नहीं है. ---वह राजनैतिक है। क्योंकि बंगाल प्रांत के जिन नायकों ने स्वदेशी आन्दोलन का आरम्भ किया है वहीं लोग कांग्रेस के अगुवा हैं और विदेशी वस्तु के त्याग का विषय, अर्थात बायकट या बहिष्कार-योग, 'स्वदेशी' में शामिल होजाने से, इस देश के राजकर्मचारी अप्रसन्न हो गये हैं। अतएव यह आन्दोलन भी, राजनैतिक-आन्दोलन करनेवाली कांग्रेसही का, एक दूसरा रूप है । इस लिये हम लोग इस प्रकार के 'स्वदेशी' आन्दोलन में शामिल हो नहीं सकते । 'स्वदेशी' और 'बायकाट' के परस्पर सम्बन्ध का विवेचन गत परिच्छेद में किया गया है । अतएव उसको दोहराने की जरूरत नहीं । अब केवल इस बात को सोचना चाहिए कि कांग्रेस और 'स्वदेशी' का यथार्थ सम्बन्ध क्या है।
पहल हमको इस बात का विचार करना चाहिए कि इस देश का राजा कौन है? साधारण लोग यही कहेंगे कि इंग्लैण्ड देश का राजा हमारा राजा है। पर इसमें सर्वाश सत्य नहीं है । इस देश की वर्तमान शासन-प्रणाली का सूक्ष्म रीति से निरीक्षण किया जाय तो पुलिस के एक अदना सिपाही से लेकर बड़े लाट साहब तक, प्रत्येक सरकारी अफसर, हम लोगों पर, राजा के ममान, राज्य करता हुआ देख पड़ेगा। जब इंग्लैण्ड की ओर दृष्टि डाली जाती है तब यह देख पड़ता है कि हमारे बड़े लाट