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स्वदेशी वस्तु का स्वीकार और विदेशी वस्तु का त्याग ये बाते एकही हैं।३३
कर हमारा धन लूट ले जाते हैं। क्या इस बात से हमारा जी जलना न चाहिए ? जिस मनुष्य का जी इस बात से नहीं जलता कि तीस करोड़ की हमारी सम्पत्ति केवल बिलायती कपड़ा खरीदने में विदेश को चली जाती है, वह 'स्वदेशी' का अनुयायी कैसे हो सकता है ? जो लोग यह कहते हैं कि इस देश में नई मिलें खोली जॉय, चरखों पर काम करनेवाले जुलाहों को उत्तेजन दिया जाय और नये नये कारखाने खोले जाँय; वे यदि विदेशी वस्तु का त्याग करने के लिये अपने देशभाइयों को उत्तेजित न करेंगे तो उनके प्रयत्नों से क्या लाभ होगा ? जवतक हमारे देशभाई विदेशी वस्तु के त्याग की प्रतिज्ञा न करेंगे तबतक नई मिलों के खोलने से और चरखों पर काम करनेवाले जुलाहों को उत्तेजन देने से, या और और चीजों के कारखाने खोलने से, क्या लाभ होगा ? विदेशी वस्तु के त्यागही में हमारी यथार्थ उन्नति की शक्ति है। अदि विदेशी वस्तु के संबंध में घृणा उत्पन्न होकर उसका त्याग ही न किया जायगा तो स्वदेशी वस्तु की मांग कैसे बढ़ सकेगी ? यदि स्वदेशी वस्तु के संबंध में प्रेम उत्पन्न होकर उसकी मांग ही न बढ़ेगा तो बड़ी बड़ी मिलें और नये नये कारखाने किस प्रकार खुल सकेंगे ? जब हमारे पूंजीवालों को इस बात का दृढ़ विश्वास हो जायगा कि हम लोगों ने विदेशी वस्तु का त्याग कर दिया है तब वे लोग बड़ी बड़ी मिलें और नये नये कारखाने खोलने में एक भी दिन का विलम्ब न करेंगे । मिलों का व्यापार बहुत लाभदायक है। उस व्यापार में पूंजीवालों को बहुत नफा मिलता है। जब वे लोग इस बात को जान लेंगे कि हमारे देश-भाई, किसी प्रकार की आपत्ति आने पर भी किसी प्रकार का सङ्कट आने पर भी-विदेशी वस्तु का स्वीकार न करेंगे, वे केवल स्वदेशी वस्तु ही का स्वीकार करेंगे, तब इस देश के प्रत्येक शहर और गाँव में स्वदेशी वस्तु के नये नये कारखाने देख पड़ने लगेंगे।
यद्यपि विदेशी वस्तु के त्याग से लाभ के सिवा कोई हानि देख नहीं पड़ती, तथापि कुछ लोग विदेशी वस्तु के त्याग की प्रतिज्ञा करने से डरते हैंवे अपने को 'बायकाट' वा 'बाहष्कार' पन्थ के अनुयायी कहलाने से हिचकते हैं। इसका कारण क्या है ? वे लोग कहते हैं कि विदेशी वस्तु के