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स्वदेशी भान्दोलन और बायकाटें।
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यदि पूछा जाय कि, जब से इस देश में अंगरेजों का राज्य प्रारंभ हुमा तप से, उन लोगों ने प्रजाहित के जो काम किये हैं उनमें सब से उत्तम कौनसा है, तो यही कहा जायगा कि पाश्चात्य ज्ञान-दान ही को अप्रस्थान देना चाहिए। उसी ज्ञानामृत का पान करने से हमारे कुछ देशहितचिंतकों ने यह सोचा कि, यदि सब लोग एकदिल होकर शांतिपूर्वक भौर नम्रता से, अपनी सम्मति सरकार पर प्रकट करेंगे, तो उसपर सरकार कुछ ध्यान देगी । अर्थात् सर्व साधारण लोगों की सम्मति को मान देकर सरकार, अपनी प्रजा की पुकार को, अवश्य सुनेगी और उसकी सदिच्छा को पूर्ण करने का प्रयत्न करेगी। बस, इसी विश्वास से हमारे सब शिक्षित समाज-नायक राज्यसंबंधी आन्दोलन करने लगे। प्राय: सब लोगों की यही राय कायम हुई, कि हिन्दुस्तानियों को राज्य-व्यवस्थानुसार आन्दोलन Constitutional ngitation सीखना चाहिए, क्योंकि अंगरेजसरकार Constitutional anitation ही को मान देती है। हर्ष की बात है कि इस प्रकार के आन्दोलन से हम लोगों को कुछ थोड़ासा लाभ भी हुआ है। छोटी मोटी बातों में गवर्नमेन्ट ने लोगों के मत का आदर किया, और उनकी पुकार पर ध्यान देकर कुछ स्वत्व भी प्रदान किये। परंतु इस बात को भलीभांति स्मरण रखना चाहिए, कि जब सरकार अपने दिल से कुछ करना चाहती है, जब वह किसी एक कार्य के संबंध में आग्रहपूर्वक अपना निश्चय कर लेती है, तब उक्त प्रकार के आन्दोलन से कुछ भी लाभ नहीं होता-बह
आन्दोलन इस देश के सरकार की स्वतंत्र और स्वेच्छाचारी गति को किसी प्रकार रोक नहीं सकता।
शायद कोई यह शंका करे कि, इंगलैण्ड में तो जन-सम्मति को बहुत मान मिलता है, ( यहां तक कि वहां के राजा का आसन भी प्रजा की सम्मति पर अवलंबित रहता है), और वही इंगलैण्ड-निवासी अंगरेज हमारे राजा हैं; ऐसी हालत में हिन्दुस्थानी प्रजा की सम्मति पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता? इसका उत्तर यह है, कि इंगलैण्ड और हिंदुस्थान की दशा में जमीन-आस्मान का फरक है। इंगलैण्ड स्वतंत्र देश है। उस देश की राज्यप्रणाली के अनुसार वहां के लोग स्वतंत्र हैं-उन लोगों के भिन्न भिन्न पक्षवाले अपने
स्व.भा. १.