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________________ ६१ जैनधर्मपर व्याख्यान. वजीव इस जैनमतपर अभिमान करूंगा और मृत्यु होनेपर यह मेरी मुक्तिका कारण होगा। मैं चाहता हूं कि इस संसारमें कमसे कम आधा दर्जन ऐसे मत होते जो जैनमत के अमूल " अहिंसा परमो धर्मः" को माननेवाले होते। मैं चाहताई कि हरएक मत गरीब जानवरों भेड़, बकरी, गौ, बैल आदिकी रक्षा करता कि जिनकी गर्दन प्रतिदिन मांसशियों को भोजनदेनेके लिये काटी जाती हैं । मैं चाहताई कि प्रत्येकमत दीन मृग, मोर और अन्य पशु और पक्षियों के शिकार करनेका निषेध करता और मैं यह भी चाहता कि प्रत्येक मत दशहरे और अन्य उत्सवोंके अवसरपर जीवोंको वध होनेसे रक्षा करता। हाय ! कितने भैसे और भेड बलिदानके निमित्त मारे जाते हैं। महाशयो ! मुझको निश्चय है कि यदि इसी प्रकार हिंसा होती रही और निरपराध जीवोंका गला कटता रहा तो हम हिन्दू बहुत जल्द निस्सत्व ( कमजोर) और निर्बल होजायगे क्योंकि हम मांससे बिल्कुल गा करते हैं। और विशेषकर हमारी शक्ति घी और दूधपर ही निर्भर है । आप विचार करें कि इस समयमें घी और दूध कितना महँगा है और पहले कितना सस्ता था, इस कारण हमको यह हिंसा गेकनी चाहिये और उन बिचारे जानवर्गका पक्ष लेना चाहिये जिनकी अगर रक्षा कीजाय तो वे हमारे लाभ के लिये नहीं तो कम से कम दयाकं कारण अवश्य हमारे कृतज्ञ ( मशकूर ) होगे । महाशयों दीन जीवापर करुणा कगे और विचारकगे कि किस तरह निदोष जीव विनाकारण बध किये जाते हैं । आज जिस बकरी, भेड़ या गौको, आप देखते हैं कल वह इस संसारमें नहीं रहती है, वह कहां चली गई ? मांस भक्षियोंके लिये उसका बध होगया, उन्हीके कारण उसका जीवन नहीं रहा । महाशयो ! कृपाकरके आप मुझको बतायें कि क्या इन बिचारे जानवरों को स्वममें भी यह मालूम होता है कि अगलेदिन उनका बध होगा, जो जानवर इस समय मौजद हैं ये क्या जानते हैं कि उनका काल निकट आगया है और कलको प्रभात वे इस संसारमें नहीं रहेंगे ? महाशयो ! आप मुझको यह भी बता कि क्या निर्दई जीवहिंसक इस बातको नहीं जानते हैं कि जान सबको प्यारी होती है और मृत्युसे सबको दुःख होता है ? दया! दया !! दया !!! मैं दयाके सिवाय और किसी बातकी प्रार्थना ( अपील) नहीं करता, यदि हममें करुणा है तो हमको गरीब जीवोंका पक्ष लेना चाहिये । इंगलैंडदेश ( England ) में देखिये ए. एफ. हिल्ज साहब डी. एल ( A. F. Hills, Ety., ID. L.) और प्रोफेसर मेयर और जोशिया ओल्डफोल्ड ( Pru. Mayor and losina old field ) प्रेरणा (तहरीक ) कर रहे है जिसका अभिप्राय केवल जीवोंकी हिंसासे रक्षण करना और शाक
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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