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________________ जैनधर्मपर व्याख्यान. मूर्ति मिलेगी तो वह अवश्य जैनमूर्ति ही होगी । हिन्दुओं की मूर्तियोंमें यह बात नहीं हैं. यह बडे शोककी बात है कि बहुत लोग जैनमतके रसको नहीं समझते हैं. वे नग्न मूर्तियां पूजनेपर जैनियोंकी निन्दा करते हैं परन्तु वे उन मूर्तियों के आसन और ध्यानको कभी नहीं देखते वे यह कभी नहीं सोचते कि ऋषि ध्यानमें मग्न होनेके कारण वस्त्र धारण करनेकी कुछ चिन्ता वा फिकर नहीं कर सक्ते थे । स! महाशयो ! जैनऋषि महान योगी थे और आप जानते हैं कि उनका धर्म "अहिंसा परमो धर्मः " हैं ॥ ४२ महाशय ! मुझे यहां एक बात से आश्चर्य हुआ है. वह यह हैं कि योगियों को पंचमहाव्रत करने पड़ते हैं । क्या यहीं जैनियोंके पंचमहाव्रत नहीं है? जैनियोंके मुनि वडे योगीश्वर थे और उनको और योगियांके मानिन्द पंचमहाव्रत पालन करने पड़ते थे || अब कपिल मुनिके सांख्य दर्शनको देखिये छठे सूत्र में कहा है .. <f सांस्यदर्शन. 'अविशेषश्चोभयोः ॥ अ० १ सूत्र ६ ॥ भाग्य- उभयोरेव दृष्टादृष्टयोरत्यन्तदुःखनिवृत्यसाधकत्वं यथाक्त तत्वं चाविशेष एव मन्तव्य इत्यर्थः ॥ अर्थ-दृष्ट और अष्ट दोनों साधन अत्यन्त द:ख निवृत्तिके साधक न होनेस और दोनों में यथां ही हेतु ( अविशद्धि इत्यादि) होनेसे दानोमें कुछ विशेष नहीं यही मानना चाहिये | दोनोंमें कुछ भेद नहीं हैं अर्थात् इख नाश करनेके प्रत्यक्ष उपाय और वैदिक उपायोंमें कुछ भेद नहीं है दोनों बगबर है और क्या इसवाते कि कि यज्ञोंमें निर्दयताका पातक लगता है । यज्ञमं जीवहिंसा होता है उसका अवश्य बुरा फल होगा और पुरुषको वह दुःख उठाना पड़ेगा || निश्चय में कपिल मुनिके मतपर चलनेवाला इस नांचे लिखी हुई श्रुतिका सच्चा माननेवाला है: 46 मा हिंस्यात् सर्वभूतानि " अर्थ- किसी जीवको हिंसा नहीं करनी चाहिये । वह इस मतको नहिं मानता कि श्रुतिः 44 अमीषोमीयं पचमालभेत् अथ - मनुष्योंको एंस पशुओंका वध करना चाहिये जिनके देवता अग्नि और सोम हैं । ऊपरवाली श्रुति: १ देखो आगे परिशिष्ट में लेस नं. ९ क. +1
SR No.011027
Book TitleLecture On Jainism
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Banarasidas
PublisherAnuvrat Samiti
Publication Year1902
Total Pages391
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size14 MB
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