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जैनधर्मपर व्याख्यान. महाशयो ! मेरा यहां यहभी निवेदन है कि शब्द हिन्दमत और ब्राह्मणमत जो प्रायः
वैदिकमतके लिये व्यवहारमें आते हैं मुझको ठीक नाम नहीं मालूम ह्यणमतं यह दोनो होते । हिन्दूमत किसको कहते हैं ? हिन्दुओंका मत हैं परन्तु नाम ठीक नहीं है.
• हिन्दू कौन हैं ? कहते हैं कि वे आर्य जो सिंधु नदीके किनारेपर बसते थे हिन्दू कहलाते हैं परन्तु क्या यह सब आर्य वैदिकमतके माननेवाले थे? क्या उनमें ऐसे भार्य नहीं थे जो वैदिकमतको बुरा बतलाते थे और क्या उनमें जैन, चार्वाक और अन्य कईमतोंके (जो अब गुप्त होगये हैं) मनुष्य नहीं थे? क्या इस भाशय से हम हिन्द नहीं हैं ? फिर केवल वैदिकमतको ही क्यों हिन्दमत कहना चाहिये ? अब दखिय कि ब्राह्मणमत किसको कहते हैं, कि ब्राह्मणांका मत सी ब्राह्मण मत है. परन्तु ब्राह्मणोंके मतसे क्या मतलब है ? वह मत जिसका ब्राह्मणाने चलाया, या ऐसा मत जिसको ब्राह्मण मानते हैं। पहली हालतम कोई एसा मत नहीं है जिसको ब्राह्मणोंने चलाया हो। हम देखते हैं कि क्षत्री भी बडे उपदेशक थे. बल्कि कई हालनाम ब्राह्मणोंसे भी बढ़ चढ़कर थे और कौन बतलासकता है कि क्षत्रियोंन उसमतके चलाने में जो सिर्फ ब्राह्मणोंका मत कहलाता है क्या २ काम किये? हम जानते हैं कि कृष्णका उपदेश और गमचंद्रजीका नमूना इस संसारमें हरएक पुरुषको उसके जीवन में धीरज बंधासक्ते हैं। कौन बतलासक्ता है कि गम और कृष्णके समान किन २ क्षत्रियोंने पुराने भारतवर्षमें उसमतके चलानेमें क्या २ किया जो अब ब्राह्मणोंका मत कहलाता है।
यदि आप कहें कि ब्राह्मणसतसे वह मत समझना चाहिये जिसको ब्राह्मण मानते हैं तो इस हालतमें भी यह पदिकमतको जाहिर नहीं करसक्ता (दिकमत केवल बाह्मणोंकेलिये ही नहीं है बल्कि द्विजन्मों अर्थात् ब्राह्मण क्षत्रिय और वेश्यों के लिये है।
यदि आप कहें कि ब्राह्मणमत वह मत है जो ब्रह्मको जानता है तो आप यह नाम एस हिन्दृदर्शनों पर जैस कि सांख्य और पूर्वमीमांसा जिनमें ब्रह्म नहीं है कैसे लगासक्ते हैं। इस कारण हिन्दमत और ब्राह्मणमत मुझको गलतनाम मालूम होते हैं यदि भाप इनको पदिक मत, या फिलासफी ( Philosophy ) के लिये भी इस्तेमालमें लावें । प्राचीनकालमें कोई हिन्दूमत वा ब्राह्मणमत नहीं था परन्तु निस्सन्देह वैदिकमत था और इस दिकमतसे जैनमत किसी प्रकार नहीं निकला।
-murmee-....
मुसल्मान हिन्दुके माने काफिरके बताते है । संक्रामे यह शब्द नहीं है।