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जैनधर्मपर व्याख्यान.
नहीं है कि मैं इस विषयमें विस्तारपूर्वक वर्णन करसकूँ परन्तु जो कुछ थोडासा मैनें भापके सामने कहा उससे आप भासानीसे जान सक्ने हैं कि लोगोंको पुराने भारतवर्षका कैसा मिथ्या हाल मालूम हुआ है पुराने भारतवर्षमें एकही मत वा फिलासिफी (Philo sophy) नहीं थी बल्कि अनेक मत और अनेक प्रकारकी फिलासफी थी जिनकी संख्या ३६३ या इससे भी अधिक थी, ठीक २ संख्या तो कौन बता सक्ता है ? ऐसी दशामें आप यह कैसे कह सकते हैं कि जैनमत ब्रामण मतसे निकला है और यह बात भी कैसे कहसते हैं कि जैनियोंने कपिल, कणाद, पतंजली, गौतम वा और दूसरे महात्माओंकी नकल की है।
क्या यह संभव नहीं है कि प्राचीन समयमें ऐसे अनेक मोके पक्षपाती थे जैसे कि पुराने भारतवर्षमं वेदांत. सांख्य जैन और चार्वाक इत्यादि जिनमें बहुतसे हमेशाके नकलकरना नहीं है
लिये नष्ट होगये हैं। नकल करनेका खयाल बहुत आश्चर्यकारी है । जो मनुष्य यह कहते हैं कि नियोंने नकल की. उनको यह साबित करना चाहिये कि कव, किस प्रकार और किसने नकल का? वे अपनी कल्पनाओं (खयालों) मे लोगोंके दिलों में क्यों भ्रम पैदा करते हैं ? । पुराने भारतवर्ष में किसी प्रकारका नकल करना नहीं था. इसबातको हमार विहान प्रोफेसर मेक्समूलर Prof. Mas Muller साहब इस तरहपर पृष्ट करते हैं:__ " हमने जो यह कथन किया है कि पुरानभारतवर्षमं तत्त्व ज्ञानसंबंधी विचार अत्यंत
मैक्समूलर Max उन्नतिपर थे और किसी प्रकारकी राक उनके लिये नहीं थी अगर Muller साहवकीराय
- यह बात सत्य हैं तो दूसरोंसे नकल करनेका खयाल जो हमारे दिलमें स्वभावहीसे बैठाहुआ है बिल्कुल अनुचित मालूम होता है । सचमुचमें कल्पना
ओंका अद्भुत समूह था और कोई रोकनेवाली शक्ति नहीं थी और जहांतक हमको मालूम है न कोई ऐसी आम राय ही थी जो उसमें कायदा उत्पन्न करती । इसलिये जैसे हमको इस बातके कहनेका अधिकार नहीं है कि कपिलने बुद्धसे नकल की. वैसे ही हमको यह कहनेका भी अधिकार नहीं है कि बुद्धने कपिलसे नकल की. कोई पुरुष यह नहीं कहेगा कि हिन्दुओंको जहाज बनानेका खपाल फिीशियावालों (Pheenicians) के जहाजों को देखकर हुआ और स्तूपकि बनानेका खयाल मिश्रदेशवालाक स्तूपोंको देखकर हुआ जब हम हिन्दुस्तानका वर्णन करते हैं तो एक ऐसी सृष्टिमें होते हैं जो उस सृष्टिस अलग है, जिसको हम यूनान, रूम और यूरोप (Eurore) के अन्य मुल्कों में देखते हैं और हमको यह उचित नहीं हैं कि झटपट यह नतीजा निकालें, कि चूंकि बौद्धमत
और कपिलके सांख्य दर्शनमें एकसी ही गयें पाई जाती हैं. इसलिये बुद्धने अवश्य कपिलकी नकल की होगी. अथवा जैसा कि कुछलोग मानते हैं